शादीशुदा बहन को उसकी सहेली के नाम से पटाया- 1

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Xxx दीदी पोर्न कहानी में पढ़ें कि मेरी बड़ी बहन त्यौहार पर हमारे घर आई हुई थी. जीजू से दीदी को पूरी चुदाई नहीं मिलती थी. एक दिन मैंने दीदी को अधनंगी देखा तो मेरा मन उसकी चुदाई का हो गया.

मेरा नाम सतीश (बदला हुआ) है उम्र 24 साल और मैं दिल्ली में रहता हूँ.
मेरा कद 5’6″ है.

वास्तव में मैं इंदौर के पास एक गाँव का रहने वाला हूँ. मेरे परिवार में पापा, माँ और दो बहनें हैं.
रेखा की उम्र 29 साल, कद 5’4″ है. उनका एक बेटा 4 साल का है.
और पूनम की उम्र 26 साल, कद 5’2″ (बदले हुए नाम)

गाँव में रहने की वजह से हमारा परिवार पुरानी सभ्यता पर ही चलता है जो आधुनिकता से कम ही जुड़ा हुआ है.

यह Xxx Didi Porn Kahani मेरी और बडी़ बहन की वास्तविक घटना पर आधारित है।

घटना उस समय की है जब मेरी बड़ी बहन की शादी शहर में हो गई थी.
मेरी बहनों और मेरे बीच साधारण रिश्ते ही थे, मैंने कभी भी उन्हें गलत निगाहों से नहीं देखा था।

त्यौहार का समय था और घर पर सभी आये हुए थे.

मैं कमरे में बैठा हुआ था.
तभी अचानक से रेखा दीदी नहाकर आई और साड़ी पहनने लगीं.

उनके लाइट के बल्ब के सामने खड़े हो जाने से कमरे में अन्धेरा सा हो गया था.

जब मैंने बहन की तरफ देखा तो देखता ही रह गया.
लाईट के सामने खड़ी होने की वजह से पेटीकोट के अन्दर दीदी की गांड साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी.
उसका 34 28 36 का फिगर मुझे रोमांचित कर रहा था.
उसकी गांड अब थोड़ी बड़ी हो गई थी.

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अब मेरा नजरिया अपनी बहन के प्रति बदलने लगा था पर बहन के पुराने ख्यालों की होने से उससे कुछ कह भी नहीं सकता था.

तभी मैंने सोचा कि बहन की खूबसूरती की तारीफ की जाये.
पर उसने मेरी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

फिर मैंने सोचा कि ऐसे तो बात बनने से रही.
तो मैंने उसकी बचपन की सहेली (रचना) के नाम से फेक फेसबुक आईडी बनाकर रिक्वेस्ट भेज दी.

कुछ समय बाद बहन का मैसेज आया- हाय रचना! कैसी हो? बहुत दिनों बाद याद किया!
मैंने भी रिप्लाई में लिखा- हां यार, शादी के बाद सब पीछे का पीछे ही छूट गया।

रेखा- हां यार!
मैंने कहा- और सुना?
रेखा- कुछ नहीं बस कट रही है.

मैं (रचना) मजाक करते हुए- क्या फट रही है? किसने फाड़ दी?
रेखा- फट नहीं कट बोला … और फाड़ने वाला तो भोपाल में ही काम में लगा रहता है, 3-4 महीने में एक बार आता है, उससे मेरी क्या फटती!

अपनी बहन के मुख से ये सब सुनकर में तो सन्न ही रह गया.
जिस बहन को इतनी सीधी समझता था, वह तो बहुत बड़ी चोदू और भूखी निकली।

मैं (रचना)- तो और किसी को पटा ले जो तेरी फाड़ सके!
रेखा- कोई कहाँ से पटा पाती! घर से बाहर जाने का कभी मौका ही नहीं मिलता काम की वजह से!

मैं- तब तो तू भूखी ही रह जायेगी?
रेखा- हां यार, अब कर भी क्या सकते हैं!

मैं- कर तो सकते है, पर तू कर नहीं पाएगी.
रेखा- बता तो … मैं करने की पूरी कोशिश करूँगी!

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मैं- अच्छा, तो सुन अपने भाई को पटा ले! वह जब तू चाहेगी, तब चोदेगा तुझे और हर कहना मानेगा.
रेखा- पागल है तू? भाई के साथ कोई ऐसा करता है भला!

मैं- मैं तो करती हूँ. अब मेरे पति की भी पोस्टिंग बाहर ही है ना! तो वे भी कम ही घर आ पाते हैं. तो खुजली मिटाने के लिए कोई तो चाहिए. पति नहीं तो भाई ही सही।

रेखा- तो तूने अपने भाई से ही … पाप है ये!
मैं- कोई पाप नहीं है. यह तो शरीर की जरूरत होती है. चाहे तू पति से पूरी कर या अपने भाई से!

रेखा- गलत है यह … मैं नहीं करने वाली!
मैं- कुछ गलत नहीं है. देख तू बाहर किसी और से करवाएगी तो पकड़े जाने का डर! साथ में वह तुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. और बात बाहर आई तो घर टूटने और बदनामी का डर. और भाई के साथ कोई डर नहीं क्योंकि वह तो बताने से रहा किसी को! और जब चाहे तब चुदवा सकती है।

रेखा- हाँ, वो सब तो ठीक है … पर भाई के साथ नहीं यार!
मैं- मैं भी तो चुदवाती हू अपने भाई से! पर रहने दे तेरे से नहीं हो पा रहा तो खुजलाती रह अपनी चूत अकेली! चल अब रात बहुत हो गई है, मुझे नींद आ रही है. बाय!

उसके बाद मैं अपनी बहन के बारे में सोचते-सोचते कब सो गया, पता ही नहीं चला.

अगले दिन सुबह उठकर जब फेसबुक खोला तो देखा कि दीदी का मैसेज आया हुआ है.

दीदी- यार कोई और उपाय बता ना … अब रहा नहीं जाता!
मैं- देख, मेरे पास तो बस यही उपाय है जो सेफ है. जिसको मैं भी आजमा रही हूँ तुझे आजमाना हो तो आजमा, नहीं तो रहने दे।

दीदी- अच्छा ठीक है, पर वो मानेगा?
मैं सोचने लगा कि तू एक बार कह तो जरा मेरी रानी, मैं तो कब से तुझे चोदने के लिये तैयार हूँ.
और मैं अपने लंड को मसलने लगा.

मैं- मानेगा क्यों नहीं, एक बार अपनी चूचियां और गाडं तो हिला उसके सामने … फिर देख!
दीदी- ठीक है, देखती हूँ!

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तभी दीदी, मैं जिस कमरे में बैठा था, उसमें आ गयी और कहने लगी- झाड़ू लगाने आयी हूँ.
तो मैंने अपना फोन अलग रख दिया और मन ही मन कहने लगा ‘झाड़ू तो बहाना है बहना, सच तो अपनी चूचियों और गाडं के दर्शन कराने आयी है.

तभी उसने कहा- पैर उठा … सोफे के नीचे बहुत धूल हो गयी है, साफ करना है.
यह बोलकर नीचे झुकते समय अपनी साड़ी गिरा दी जिससे उसकी ब्लाउज में छिपी चूचियां मुझे आधी दिखने लगी।

वाह! क्या चूचियां थी … गोलमटोल, कड़क, पसीने से लथपथ … मेरे मुंह में तो पानी आ गया, बस उनको चूसने का मन करने लगा.

खैर जैसे तैसे मैंने मन को समझाया.
शायद दीदी ने मुझे देख लिया था और वह हल्की सी मुस्कान देकर मेरे हाथ के ऊपर बैठ गयी और कहने लगी- सोफे के पीछे भी धूल है, उसे भी साफ कर दूं.

उसकी गांड मेरे हाथ पर थी.
वाह! क्या मखमली … जैसे कह रही हो कि मेरी प्यास बुझा दे!

ये इतना आनंदित करने वाला था कि मेरे लंड ने आकार बदलना शुरू कर दिया था जो दीदी ने देख लिया था.
फिर वह हल्की सी मुस्कान देती हुई वहाँ से चली गयी.

उसके जाने के बाद मैंने अपने आपको सम्हाला.
तभी फोन पर दीदी का मैसेज आया- रचना यार, तू सही कह रही थी. वह मेरी चूचियों को घूर रहा था और गांड पर भी दवाब डाल रहा था।

मैं- मैंने कहा था ना, बहन हो या और कोई … लंड को तो बस चूत दिखती है.
दीदी- हां, अब लगता तो ऐसा ही है. पर कहीं मेरा यह वहम भी तो हो सकता है.
मैं- वहम नहीं है. अच्छा, जब घर पर कोई न हो तब नहाते समय अपने कपड़े उसी से मंगाना और कपड़ों में देखना कुछ अजीब हो तो!
दीदी- चलो ठीक है. बाय!

अगले दिन मैंने देखा कि पापा-मम्मी सामान खरीदने के लिए बाजार जा रहे हैं.
तो मैंने भी अपना कुछ सामान लाने के लिए बोल दिया.

छोटी बहन अंदर किचन में खाना बना रही थी.
मैंने उससे पूछा- दीदी नहीं दिख रही है?
तो उसने कहा- वो नहाने गयी है.

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रेखा दीदी की आवाज आई- कोई मेरे कपड़े दे दो मैं लाना भूल गयी. वहीं कुर्सी पर रखे हैं.
पूनम कहने लगी- जा तू दे आ, मेरे तो हाथ गंदे हैं.
मैंने कहा- ठीक है!

मैं तो इस मौके के इंतजार में कब से था.
दीदी के कपड़े उठा कर मैं अपने रूम में ले जाकर उनकी झल्लीदार पैंटी और ब्रा को चूमने और चाटने लगा.
उफ्फ! क्या पैंटी थी.
और बहन को याद करते करते कल्पनाओं में बहन को चोदते चोदते पैंटी को लंड पर लगाकर मुट्ठ मारने लगा, अंत में सारा वीर्य दीदी की पैंटी पर ही छोड़ दिया.

तभी दीदी की आवाज आई- कोई मेरे कपड़े लायेगा या फिर मैं अंदर यूं ही खड़ी रहूँ?

आवाज सुनते ही मैं होश में आया और कहा- लाया अभी!
फिर मैंने जल्दी से उसकी पैंटी साफ की और सारे कपड़े दे आया.

कुछ समय बाद दीदी बाहर आकर घर के काम करने लग गयी.

फिर हम सब ने खाना खाया और आराम करने लगे.

तभी दीदी का मैसेज (रचना के लिए) आया- रचना यार, तू सही कह रही थी. मैंने भाई से कपड़े मंगाए तो वे थोड़े चिपचिपे, गीले और वीर्य से सने हुए लग रहे थे.
मैं- अच्छा! वो भी तेरे साथ खेलना चाहता है!
रेखा- तो वह बहनचोद बनने की सोच रहा है. पर मैं उससे सीधे तो बोल नहीं सकती कि आजा अपनी दीदी को चोद डाल! कुछ उपाय बता ना यार … मेरी चूत का पानी टपकने लगा है. प्लीज यार! अब चुदे बिना और रहा नहीं जाता!

मैं- अरे बताती हूँ, थोड़ा सब्र कर!

तभी अचानक से बाहर से गाड़ी की आवाज आई.
उठकर देखा तो पापा मम्मी बाजार से वापिस आ गए थे.

दीदी- चल बाद में बात करती हूँ.
और वह भी गांड मटकाती हुई बाहर आ गयी।

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तभी पापा कहने लगे- रेखा, जल्दी से तैयार हो जाओ, तुम्हारी बस का समय हो गया है.
और दीदी अपना सामान लेकर तैयार होने चली गयी.

कुछ समय बाद पापा दीदी और उनके बच्चे को बस में बैठाने जाने लगे.
तो दीदी सबके गले लगने लगी और मुझे भी बड़े प्यार से गले लगाया.

इस बार उनका गले लगाने का अंदाज़ा कुछ अलग ही थी.
उसकी चूचियां मुझे कसकर दबोचे हुईं थी जो मेरे तन तन को रोमांचित कर रही थी.

वह बोली- मैं जल्द ही वापस आप लोगों से मिलने आऊंगी. सभी की बहुत याद आयेगी मुझे!
मैंने भी कह दिया- मुझे आपकी बहुत याद आयेगी.
जिस पर वह हल्की सी मुस्कान देकर अपने घर के लिए रवाना हो गयी.

अगले भाग में जानें कि कैसे दीदी के बिना कहे मैंने अपनी बहन को चोदा.

मेरी कहानी आपको अच्छी लगी होगी.
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