प्रेमिका की शक्ल से मिलती जुलती महिला को चोदा

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मेरा नाम संजीव है मेरी उम्र 28 वर्ष की है, मैं गांव का रहने वाला एक लड़का हूं और मेरा गांव उत्तर प्रदेश में पड़ता है। मैंने अपने गांव से ही अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की है और उसके बाद मैंने आगे पढ़ाई नहीं कि। मैं गांव के ही दुकान में काम करता हूं और उसी दुकान में काम करते हुए मुझे काफी समय हो चुका था। जिस दुकान में मैं काम करता था उनकी लड़की का नाम मीनाक्षी है उसके और मेरे बीच में प्रेम संबंध कब हो गया मुझे पता ही नहीं चला। वह अक्सर हमारे लिए दुकान में चाय लेकर आती थी और जब भी वह दुकान में चाय लेकर आती तो वह मुस्कुरा देती थी और जब वो मुस्कुराती थी तो पहले तो मुझे अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मैं सोचता था शायद उसकी आदत ही ऐसी हो लेकिन धीरे-धीरे जब मैं समझने लगा कि वह मुझ पर डोरे डाल रही है। तब मैंने भी उसे देख कर मुस्कुराना शुरू कर दिया और एक दिन मैंने उसे कागज में अपना फोन नंबर लिख कर दे दिया।

जब उसने मेरा नंबर देखा तो उसने तुरंत ही मुझे फोन कर दिया और पहले वह मुझसे बात करते हुए शरमा रही थी लेकिन धीरे-धीरे हम दोनों के बीच में बातें काफी बढ़ने लगी और हम दोनों अब अच्छे से बात कर लिया करते थे। मुझे मीनाक्षी के साथ बात करना बहुत ही अच्छा लगता था क्योंकि उसका स्वभाव बहुत ही सिंपल और साधारण किस्म का था। उसकी हमारे गांव में सब लोग तारीफ किया करते थे और कहते थे कि मीनाक्षी के जैसी लड़की हमारे पूरे गांव में नहीं है। यह बात मुझे भी पता थी इसीलिए मेरे और मीनाक्षी के बीच में प्रेम संबंध थे। कभी कबार वह मेरे लिए खाना भी ले आती थी और जब वह मेरे लिए खाना लाती थी तो मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं भी उसे चुपके से मिल लिया करता था क्योंकि गांव में हम लोग कहीं बाहर नहीं जा सकते थे इसलिए हम लोग सिर्फ फोन पर ही बातें किया करते थे। मेरे दिल में उसके लिए बहुत ही अच्छे भाव थे और मैं चाहता था कि मैं उसके साथ अपना जीवन बिताऊ लेकिन एक दिन उसके पिताजी ने हमें पकड़ लिया और जब उन्होंने मुझे पकड़ा तो कहा तुम जिस थाली में खा रहे हो उसी में छेद कर रहे हो, यह तुम्हारे लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है।

उन्होंने उसके बाद मुझे कभी भी मीनाक्षी से मिलने नहीं दिया। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं उसे कभी भी मिल नहीं पाया। उसके पिता ने मुझे धमकी दे दी यदि तुम हमारे गांव के नहीं होते तो हम तुम्हारा मार मार कर बुरा हाल कर देते लेकिन फिर भी मैं कोशिश करता रहा कि मेरी उससे किसी प्रकार से मुलाकात हो सके लेकिन उसके बाद मैं कभी भी उससे नहीं मिल पाया। एक बार मैंने उसे देख लिया था लेकिन फिर भी मैं उससे बात नहीं कर पाया क्योंकि उसके साथ उसकी मां भी थी। मैंने उसके पिता को बहुत ही समझाने की कोशिश की लेकिन वह बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं थे और कहने लगे कि मैं गांव का इतना सम्मानित व्यक्ति हूं और तुम एक गरीब व्यक्ति हो, हम दोनों की कभी भी बराबरी नहीं हो सकती है इसलिए मैं नहीं चाहता कि मीनाक्षी तुमसे बात करे या तुमसे कभी भी वह मिले इसी वजह से उन्होंने मीनाक्षी और मेरा मिलना बिल्कुल बंद कर दिया था और उन्होंने मुझे दुकान से भी निकाल दिया। अब ना तो मेरे पास कोई काम था और ना ही मेरी स्थिति कुछ ठीक थी। हम लोग खेती कर के अपना गुजारा चलाते थे लेकिन इस वर्ष फसल भी इतनी अच्छी नहीं हुई और हमारे ऊपर और भी ज्यादा कर्ज गया।

मेरे पिताजी तो बहुत ही दुखी थे और कह रहे थे कि इस वर्ष अच्छी फसल भी नहीं हुई और हमारी कुछ आमदनी भी नहीं हो पाई। मैंने उन्हें समझा रहा था कि चलो कोई बात नहीं कुछ ना कुछ अच्छा हो जाएगा लेकिन मैं अंदर से खुद भी दुखी था और मुझे लग रहा था कि अगर मैं मीनाक्षी से नहीं मिल पाया तो कहीं उसके पिता उसकी शादी ना करवा दें। मैं इन हालातों में भी उसी के बारे में सोच रहा था और जैसा मैं सोच रहा था वैसा ही हुआ। उसके पिता ने उसके लिए दूसरे गांव में लड़का देख लिया था और वह लोग भी उस गांव के सम्मानित लोग थे। वह लोग बहुत पैसे वाले थे इसी वजह से उनकी पहचान बहुत थी। उसकी शादी वहां तय कर दी गयी, जब मुझे यह बात पता चली तो मैं उनके घर चला गया और मैंने उसके पिता से बहुत ही विनती की लेकिन वह बिल्कुल भी मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे। मैंने जब मीनाक्षी की आंखों में देखा तो उसकी आंखों में भी आंसू थे और वह बहुत ज्यादा दुखी थी लेकिन उसके पास भी कोई चारा नहीं था शिवाय शादी करने के। मुझे कहीं ना कहीं अब अंदर से बहुत दुख महसूस हो रहा था और मैं काफी उदास भी था। मैं कई दिनों तक घर से बाहर भी नहीं निकला और उसी दौरान मीनाक्षी की शादी भी दूसरे गांव में हो गई। अब मैं बिल्कुल ही टूट चुका था, मुझे कुछ भी काम करने की इच्छा नहीं थी। मैंने सोचा कि मैं क्या काम करूं जिससे कि मेरे घर में आमदनी आए और हमारे घर का खर्चा चल सके लेकिन हमारे घर की स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी इसी वजह से मेरे पिता को कर्ज देना पड़ा और उन्होंने जो कर्ज लिया था उन्हें वह चुकाना भारी पड़ रहा था।

वह लोगों के घर भी जाकर काम कर रहे थे और मेरी मां भी खेतों में काम करती थी। मुझे भी लगने लगा कि मुझे किसी न किसी प्रकार से उनका कर्ज चुकाना ही पड़ेगा लेकिन मैं ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं था इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने अपने पिता से कुछ पैसे लिए और मैं अब शहर में नौकरी करने के लिए चला गया, मैं अब लखनऊ में आ गया। जब मैं लखनऊ में आया तो मुझे वहां पर कुछ भी काम नहीं मिल रहा था काफी दिनों तक मैं ऐसे ही धक्के खाता रहा लेकिन एक दिन मुझे एक दुकान में काम मिल गया। अब मैं उसी दुकान में काम कर रहा था। मैं वहां पर बहुत ही अच्छे से काम किया करता जिससे कि मेरे मालिक भी बहुत खुश थे और वह कह रहे थे कि तुम बहुत ईमानदारी से काम करते हो। मैं उन्हें सारा हिसाब शाम को दे दिया करता था। अब वह मुझ पर बहुत भरोसा करने लगे और उन्होंने कहा कि यह दुकान तुम ही संभाल लो और मुझे महीने का एक हिसाब बता दो कि तुम मुझे महीने में कितना पैसा दे दिया करोगे। मैंने उन्हें कहा ठीक है यह दुकान मैं ही संभाल लेता हूं और मैं उन्हें महीने में कुछ पैसे दे दिया करता था, जो हम दोनों के बीच में रकम तय हुई थी वही पैसे में उन्हें दे देता था क्योंकि उनकी और भी दुकानें थी इस वजह से वह यह काम नहीं संभाल पा रहे थे। मेरी दुकान भी अब अच्चे से चल रही थी और मैं उन्हें समय पर पैसे दे दिया करता था। मेरी दुकान में एक महिला आती थी वह शादीशुदा थी और मुझे उन्हें देख कर बहुत अच्छा लगता था क्योंकि उनका चेहरा मीनाक्षी से मिलता-जुलता था इसीलिए मैं उन्हें देखकर हमेशा ही मुस्कुरा देता था। वह मुझे एक दिन पूछने लगी कि तुम मुझे देख कर इतना क्यों मुस्कुराते हो। मैंने उन्हें कहा कि आपका चेहरा मेरे किसी परिचित से मिलता है इसीलिए मैं आपको देखकर मुस्कुरा देता हूं। मैंने उस दिन उनसे उनका नाम पूछा, उनका नाम सुहानी है और वह मेरी दुकान से कुछ दूरी पर ही रहती थी। अब वह अक्सर मेरी दुकान में सामान लेने के लिए आ जाया करती थी और मैं उन्हें जब भी देखता तो मेरी पुरानी यादें ताजा हो जाती। मुझे उन्हें देखना बहुत ही अच्छा लगता था और कहीं ना कहीं उन्हें देखकर मैं अपने आपको अच्छा महसूस कर लिया करता था। मैं अब घर भी कुछ पैसे भेजने लगा था जिससे कि मेरे पिताजी का कार्ज चुकता होने लगा था।

सुहानी अक्सर मेरी दुकान में आया करती थी। एक दिन वह दुकान से कुछ सामान ले गई और कहने लगी कि क्या आप मेरे घर पर यह सामान छुड़वा देंगे क्योंकि मैं इतना सामान नहीं ले जा पाऊंगी। मैंने उसे कहा ठीक है मैं आपके घर पर सामान रख देता हूं। मैंने अपनी दुकान का शटर डाउन कर दिया और मैं उसके साथ ही उसके घर पर चला गया। जैसे ही मैंने उसका सामान रखा तो मैं उसकी मदद करने लगा और उसी दौरान मेरा लंड उसकी गांड से टच हो गया जैसे ही मेरे लंड उसकी गांड टच हुआ तो मेरा लंड खड़ा हो चुका था अब सुहानी के अंदर की भी सेक्स की भूख जाग गई। मैंने उसे कसकर पकड़ लिया मैंने जैसे ही उसे पकड़ा तो वह पूरी उत्तेजित हो गई और अपने स्तनों को मुझसे टकराने लगी। मैंने उसके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया और मैंने उसके कपड़े खोल दिए। जब मैंने उसके कपड़े खोले तो उसके बड़े बड़े स्तन और बड़ी बड़ी गांड मुझे साफ-साफ दिखाई दे रही थी।

मैंने अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया और वह मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी। उसने बहुत देर तक मेरे लंड को चूसा जिससे कि मेरी उत्तेजना पूरी जाग चुकी थी। मैंने अब उसकी योनि को थोड़े देर तक अपनी जीभ से चाटा उसके बाद उसकी योनि गीली हो गई। मैंने जैसे ही अपने लंड को उसकी योनि पर लगाया तो मेरा लंड अंदर चला गया। अब मैं उसे बड़ी तेज गति से चोदे जा रहा था और उसके मुंह से सिसकियां निकल रही थी। वह भी मेरा पूरा साथ दे रही थी और मैं भी उससे उतनी ही तेजी से धक्के मारता जाता। उसकी योनि इतनी टाइट थी कि मेरा लंड बुरी तरीके से छिल चुका था। वह भी पूरे मूड में आ रही थी और मुझे कहने लगी कि तुम्हारा लंड तो बहुत ही मोटा है मुझे अपनी चूत मे लेकर बहुत ही मजा आ रहा है। मैंने भी उसे बड़ी तेज गति से झटके मारना शुरू किया मैं उसकी योनि की गर्मी को बिल्कुल भी बर्दाश्त न कर सका और कुछ ही क्षणों बाद मेरा वीर्य पतन हो गया। मैंने सुहानी के मुंह में अपने लंड को डाल दिया और वह मेरे लंड को बहुत ही अच्छे से चूसने लगी उसने बहुत देर तक मेरे लंड को चूसा जिससे कि मेरे लंड से दोबारा पानी निकलने लगा उसने वह सब अपने मुंह में ही ले लिया। अब मैं उसे अपनी दुकान से सारा सामान फ्री में दिया करता था और वह मुझे उसके बदले अपनी चूत मारने देती थी।