ताऊ ने तार-तार की मेरी कुंवारी बुर

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(Tau ne Taar-Taar ki Meri Kunwari Bur) 

मेरा नाम सोनिया है।

मैं बरेली की रहने वाली हूँ।

मैंने अभी चौदवह बसंत पार कर पंद्रहवें में कदम रखा ही है।

पिछले महीने ही मुझे मासिक शुरू हुआ है।

मेरे परिवार में मम्मी-पापा, एक छोटा भाई तथा एक विधवा नौकरानी रीता है जिसकी उम्र तीस वर्ष है।

घर ज्यादा बडा नहीं हैं दो कमरे, एक आँगन और भैंसों के लिए बाड़ा बना हुआ है।

मेरे पापा के एक बडे भाई भी हैं जो कि इस समय आगरा में काम करते हैं।

वे एक सप्ताह पहले काम से गाव आये थे।

देखने में तो ठीक ही हैं परन्तु ज्यादा बात नहीं करते हैं।

उनके आने के दो दिन बाद ही मैंने अपनी नौकरानी के हाथों में नेलपालिश देखी तो मैंने पूछा कि यह कहां से ली है।

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वह बोली कि बाजार से।

मैंने कहा कि मुझे भी ला देना तो वह हाँ कह कर चली गई।

उसी रात को मैंने देखा कि भैंसों के बाडे की तरफ से किसी की आवाज आ रही है तो देखने से पता चला कि ताउ जी ने रीता को वहीं पर लिटा रखा है और उसके चूचों को चूस रहे हैं और उसकी टाँगों के बीच में अपना लण्ड डाल रहे हैं।

मुझे घिन आ गई और मैं छी कह कर चली गयी परन्तु मेरा मन उसी ओर बार-बार चला जा रहा था।

तभी मेरे मन में अचानक विचार आया कि ऐसा करने में दर्द होता है या मजा आता है।

अब इस प्रश्न का जबाब तभी मिल सकता था जब ऐसा मेरे साथ कोई करे जो कि सम्भव नहीं था।

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मैंने अपनी चड्डी में हाथ लगाया तो वह गीली हो गई थी और चिकनापन भी था।

मैंने उॅंगली से अपनी चूत के दाने को छूआ तो थोडा आनन्द आया।

अब मैंने सोचा कि लण्ड के आकार की कोई वस्तु होती तो शायद और भी अच्छा लगता हो।

मैंने नजर दौडा कर इधर-उधर का जायजा लिया और सीधा किचन में चली गई। वहां मुझे लौकी, कददू, आलू के बीच कुछ समझ न आया।

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जब फ्रिज खोल कर देखा तो एक केला नजर आया। उसी केले को लेकर मैं कमरे में चली आई।

अपने कपडे उतार कर पलंग पर टागें फैला कर बैठ गई।

अब मैंने केला अपनी चूत पर लगाया, वो थोडा खुरदरा था तो मैंने उसी छील दिया।

अब मैंने उसे अपनी चूत पर घिसना शुरू कर दिया।

एक मिनट बाद मेरी बुर से थोडा पानी सा निकलता महसूस हुआ।

अब तो मेरी उत्तेजना का पारा चढने लगा।

मैंने उस केले को अन्दर करने का प्रयास शुरू कर दिया परन्तु मेरी छोटी सी चूत में केला जाने का नाम ही नहीं ले रहा था।

मैंने अचानक जोर लगाया तो थोडा सा केला अन्दर गया और मुझे आनन्द आने लगा।

अब मैंने और जोर लगाया पर केला अब अन्दर जाने की जगह मुढ कर टूट गया।

मैंने बहुत कोशिश की पर सफल नहीं हो पायी। तभी अचानक मुझे किसी की आहट हुई और मैं सोने का बहाना करने लगी।

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फिर लाइट चली गई और सब लोग बाहर आँगन में आकर लेट गए।

मैं भी बाहर चारपाई पर लेट गई।

मुश्किल से एक घण्टा ही हो पाया था कि ताउ जी मेरे बिस्तर पर आ गए।

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कब? मुझे पता ही न चला।

ताउ जी मेरे उपर चड़े हुए थे और न जाने कब से मेरे शरीर से खेल रहे थे।

मैं अभी भी गहरी नींद में थी।

शायद यह कोई सपना है मैं यही सोच रहा थी।

कोई मेरे दूध रगड रहा है और धीरे-धीरे मेरी जाघों को सहला रहा है अब उस व्यक्ति ने मेरे सलवार का नाडा खोल दिया है।

अपना लण्ड मेरी बुर के उपर रगड रहा है।

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तभी अचानक ताउ ने दबाव बडा दिया और दर्द होने के साथ ही मेरी नींद खुल गई।

फिर मुझे अहसास हुआ कि मैं कोई सपना नहीं बल्कि सच में होती घटना का अहसास कर रहीं हूँ।

मुझे बहुत बुरा लगा और मैं ताउ जी का विरोध करने लगी।

पर ताउ जी ने कहा कि जानू केला लेना ही था तो मुझे बता दिया होता।

ताउ एक बलिष्ठ व्यक्ति थे और मेरे शरीर को पूरी तरह से जकड़े हुए थे।

अपनी इज्जत लुटते हुए मैं चाह कर भी रोक नहीं पा रहीं थी।

चीख भी नहीं सकती थी कि सभी लोग बाहर मेरे बगल से ही खटिया डाल कर सो रहे थे।

अब ताउ ने अपने मुँह में लेकर मेरे होंठ चूसना शुरू कर दिए और एक हाथ से मेरी चूची मसलने लगे।

उनका सुपडा मेरी बुर से टिका हुआ था। मेरे बुर के नकुए पर वह अपनी गर्मी को छोड रहा था।

तभी ऐसा लगा कि लण्ड से कुछ गीला सा पदार्थ निकल रहा है।

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इतने में ही ताउ ने थोडा पीछे होकर अपनी कमर को हिला दिया, अब वह चिकना पदार्थ मेरी बुर के होठों को तर करने लगा था।