देहरादून में होटल के कमरे में सेक्स

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हॉट गर्ल होटल फक का मजा मुझे दिया मेरी देसी प्रेमिका ने जो मेरे साथ उत्तराखंड में भ्रमण हेतु मेरे साथ गयी थी. घूमना तो क्या था, ज्यादा समय तो चोदन में ही बीता.

मैं और अंजलि देहरादून घूमने गए थे।
घूमना तो क्या था … बस वही रातभर चलने वाला खेल!
उस रात भी तीन बार खेल खेला गया।

लेखक की पिछली कहानी: उफ़ ये मोहब्बत … या वासना

Hot Girl Hotel Fuck के बाद सुबह उठे तो टहलने निकल गए।

जब आए तो अंजलि ने कपड़े बैड पर रखे और कहा- पहले आप नहा लें, फिर आराम कर लीजिएगा। पूरी रात के थके हुए हैं।
मैंने हामी भरी और बाथरूम में चला गया।

कपड़े उतारकर मैं गर्म पानी के शावर के नीचे खड़ा हुआ तो गर्दन पर हल्की सी जलन हुई।
यहां रात में अंजलि ने लव-बाईट दी थी।

जब जलन हुई तो मैं मुस्कुरा पड़ा।
काफी देर तक मैं शावर के नीचे खड़ा रहा।

तभी मैंने बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज सुनी तो मैं जल्दी से घूमा और मेरी आंखें फैलती चली गईं।
दरवाजे से अंजलि अंदर आ रही थी।

जज्बात से उसके गाल लाल हो रखे थे।

अपने उन्हीं कपड़ों में वो अंदर आई।
उसके लंबे और फैले हुए काले बाल उसकी कमर से नीचे तक आ रहे थे।

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वो चादर जिसे वो हर वक्त लपेटे रखती थी इस वक्त शायद अन्दर बैड पर रखी हुई थी।
सीने के उभार मेरे सामने ही थे।

कमीज में फंसे हुए वो बड़े-बड़े से उभार इतराने के अंदाज में तनकर खड़े थे और अंजलि के चलने से हल्के-हल्के हिलते।

उभारों की ऊंचाई ने कमीज और उसके जिस्म के बीच फासला बरकरार रखा था जिससे उसकी गोलाइयां और रंग झलके जा रहे थे।

अंजलि मेरे करीब आ चुकी थी।
शावर का पानी अब उस पर भी गिर रहा था।

मेरे करीब आकर वो मेरी आंखों में देख रही थी जहां हैरानी के सिवाय कुछ भी नहीं था।

क्या यह ख्वाब है?
मैं अपनी आंखें मसलता हुआ बड़बड़ाया.
और जब अंजलि ने करीब आकर मेरा हाथ पकड़ा तो एहसास हुआ कि यह ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है।

उसके जिस्म की गर्मी और महक मुझे बेचैन किए जा रही थी।
उसका अंदाज, उसका जिस्म, उसकी महक, सब पागल कर देने वाला था।

मैंने उसे अपनी बाहों में भरकर शावर के नीचे कर लिया।
अब हम दोनों पर पानी गिर रहा था।

अंजलि के पूरे कपड़े भीग चुके थे जिससे उसकी ब्रा और अंदर का गोरा रंग बाहर झलक रहा था।

उसकी आंखों में मस्ती और होंठों पर शरारत थी।
मैंने झुक कर उसके चेहरे को चूम लिया और फिर नर्म-गर्म से होंठ थाम लिए।

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क्या नरमी थी उन होंठों में!
मैं तो बस चूमता ही चला गया।

पानी अब भी हमारे ऊपर गिरता हुआ हमें भिगो रहा था।

मस्ती और सेक्स की चाह की लहरें सी दौड़ने लगीं थीं।

अंजलि का सीना मुझसे टकराया तो एक सरसराहट सी दौड़ गई।
पानी गिरते हुए भी उसका पूरा जिस्म गर्म ही था।

मैंने उसके होंठों को चूमते हुए उसके सीने पर हाथ रख दिए।
इतराती हुई उंची चट्टानें अपनी ऊंचाई पर सख्ती से कायम थीं।
मेरे हाथ ने उन्हें दबाना चाहा और पकड़ लिया।

अंजलि के मुंह से गर्म-गर्म सांसें निकल रहीं थीं।
उसके हाथ मेरी कमर पर हल्के से मसाज सी कर रहे थे।

मैं अभी तक होंठ चूम रहा था और अब एक हाथ नीचे ले जाकर उसे एक बड़े से गोल-गोल चूतड़ पर रखा।
क्या नर्म-नर्म थे।

और जब उसने मेरी कमर पर हाथ रखकर थोड़ा सा उठकर मेरे होंठ चूमे तो मैं झूम गया।
क्या शिद्दत थी … क्या गर्मी थी।

मैं उसकी कमीज को ऊपर उठाने लगा और वह मस्ती भरी नजरों से देखे जा रही थी।

और जब मैंने कमीज उतारी तो गोरे-चिट्टे, भारी-भरकम दूध के बड़े से डोंगे मेरे सामने मचल रहे थे।

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मैंने उसकी ब्रा के ऊपर से ही उन्हें दबाया और वो ऊपर को उठते हुए और भी गहरा दायरा बनाने लगे।
मुझ पर मस्ती की लहरें बार-बार हमला कर रहीं थीं।

मैंने दोबारा से उसे खुद से चिमटा लिया।
नीचे से मेरा लंड भी खड़ा हुआ सलामी दे रहा था।

मैंने शावर बंद किया और अंजलि को बाहों में भरकर उठा लिया।
वह मेरी बाहों में उठी हुई मुझे ही देख रही थी।

मैं बाथरूम से बाहर आया और उसे बैड पर लिटाते हुए उसके ऊपर आ गया।

उसके चेहरे पर पानी की बूंदें बिखरी हुईं थीं जिन्हें अब मैं अपने होंठों से समेटता जा रहा था।

पूरा चेहरा चूम-चूम कर चमका दिया मैंने … और उसके बाद उसकी ब्रा को उतारते हुए पूरे सीने के हिस्से और बड़ी सी चूचीयों पर बिखरी पानी की बूंदों को भी चूम-चूम कर साफ कर दिया.

और अब मैं उसकी सलवार नीचे खींचने लगा।

अंजलि भी मस्ती में थी।
उसकी सिसकारियां निकल रहीं थीं।
वह बेचैनी से अपनी टांगों को हिलाए और उठाए जा रही थी।

इधर मैंने उसकी सलवार उतारने के बाद पैंटी भी खींच दी।

नीचे उसकी बड़ी सी उभरी और फूली हुई चूत मेरे सामने थी जिस पर हल्के-हल्के से सुनहरे बाल दिख रहे थे।

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अब क्योंकि अंजलि की चूत पिछले तीन दिन से लगातार सिर्फ चुद ही रही थी तो सफाई का वक़्त ही नहीं मिला।
लेकिन बालों को ये थोड़े ना पता था तो वे तो अपनी रफ्तार से बढ़ते रहे।

अब मैंने उसकी टांगों के बीच से आकर उसकी चूचियां चूसनी शुरू कर दीं।
ये चूचियां थीं या दूध की थैलियां।

बार-बार मेरे मुंह से निकलतीं और मैं फिर दोबारा से थामकर मुंह में पहुंचाता।

अंजलि सिर के नीचे तकिया रखे मुझे देख रही थी।
नीचे मेरा लंड फूल-तनकर अंगड़ाइयां ले रहा था।

मैं कुछ देर तक उसकी चूचियां चूसता रहा और जब दिल भर गया तो पीछे हटा और अंजलि की टांगें उठाकर उसकी चूत के सामने लंड रख दिया।
लंड को उसकी चूत के ऊपर रखा तो वो खुशी से मस्त हो गया।

अंजलि मुझे ही देखे जा रही थी।

अब मैंने लंड को चूत पर रखकर दबाव दिया लेकिन चूत बाहर से जितनी फूली हुई थी अंदर से उतनी ही तंग थी।
लंड का टोपा अंदर जाकर फंस गया और अंजलि की एक मस्ती भरी आह निकली- आह जान … आह!

उसने हिलने की कोशिश की लेकिन मैंने उसकी टांगें पकड़ लीं और थोड़ा सा उठकर उसके ऊपर आ गया।
अंजलि अभी भी आहें भरे जा रही थी- आह जान … उफ्फ … इस्स!

मैंने थोड़ा सा ऊपर होकर उसके हिलते हुए बड़े से कबूतर थामे और एक धक्का और दे दिया।

उसकी चूत ने मेरे लंड को पूरी तरह से जकड़ लिया।
आगे जाने के सारे रास्ते बंद थे मगर लंड भी अपनी जिद्द पर अड़ा था तो तबाही सी मचाते हुए अपना रास्ता बना ही लिया।

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अंजलि की बड़ी सी चूचियां उछल कर गिरीं।
जैसे किसी उछलती-कूदती गाड़ी में लोग खुद को संभालने की कोशिश करते हैं, वैसे ही उसकी चूचियां उछलती और मचलती जा रही थीं।

अंजलि एक हाथ मुंह पर रखते हुए आवाज कंट्रोल कर रही थी और दूसरा हाथ नीचे उसकी अपनी चूत के दाने को सहला रहा था।

मैंने थोड़ा सा हिलते हुए लंड को थोड़ा सा और आगे पहुंचाया तो अंजलि उठकर मुझे रोकने लगी मगर मैं उस पर झुकता हुआ उसके चेहरे की तरफ गया और उसे चूमने लगा।

उसके होंठों को मैंने इतने जोर से काटा कि वह तड़प उठी।

नीचे उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां सहमी हुई सी लरज रही थीं।
मैं कुछ देर तक ऐसे ही उस पर लेटा तसल्ली देता रहा।

कुछ देर में वो नॉर्मल हुई तो उठकर वापिस आया और दोनों टांगें थामकर धक्के देना शुरू किया।

अंजलि अब भी मुझे आहिस्ता-आहिस्ता धक्के देने को कह रही थी तो मैं आहिस्ता से हिलता रहा.

और जब वह कुछ और नॉर्मल हुई तो लंड बाहर निकालकर एकदम अंदर पहुंचा दिया।

अंजलि की एक मदमाती आह निकली और फिर मैं धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर करने लगा।

अभी भी अंजलि आहिस्ता से आहें भर रही थी और मैं धीरे-धीरे धक्के देता हुआ झटकों पर आ गया।
हर झटके के साथ उसका पूरा बदन कांप जाता और आह … इस्स्स्स … की आवाज निकलती।

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मैंने उसकी एक टांग नीचे कर दी और दूसरी टांग को हवा में उठाकर अपने सीने से लगा लिया और फिर से लंड को अंदर-बाहर करने लगा।

अंजलि की फिर से आह निकली।
अबकी बार मैं कई मिनट तक लगातार धक्के देता रहा और फिर इसी तरह उसे करवट देकर उल्टा कर दिया।

अब मैं उसकी नर्म-नर्म गांड पर सवार था और झटके पहले से तेज कर दिए।

अंजलि भी साथ-साथ आहें भरती जा रही थी।
वह बस झड़ने ही वाली थी.

और फिर वह एक तेज आह के साथ झड़ने लगी।
मैंने कुछ और झटके दिए मगर अंजलि ने घूमकर मुझे अपने ऊपर खींचते हुए खुद से लिपटा लिया- जान अभी बस, बाकी शाम को कर लेना! मुझे नीचे जलन हो रही है, मैं चूस लेती हूं।
कहा उसने!

तो मैंने एक नजर उसे देखा और हामी भर ली।

अब अंजलि ने शुरू करी चुसाई।
ऐसी चुसाई कि मेरी आंखें बंद होने लगीं.
और कुछ ही देर में मैं उसके मुंह में ही झड़ गया।
वह भी सारा जूस पी गई, एक कतरा भी बाकी नहीं छोड़ा।

अब हमें भूख लग रही थी तो मैंने अंजलि को कपड़े पहनने का इशारा किया।
हमने कपड़े पहने और कुछ खाने के लिए बाहर चले गए।

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