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मेरी सहेली मेरे यार से चुद गयी नदी किनारे-2
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गाँव का देसी सेक्स का नजारा मैंने देखा जब मैं कुछ दिन में गाँव में रहने आई. मेरे सामने मेरी सहली ने खुले में पॉटी की, मेरे सामने चुदी. फिर वो मेरे सामने नंगी नहाई.

फ्रेंड्स, मैं आपकी सारिका कंवल एक बार पुन: आपकी सेवा में हाजिर हूँ.
सेक्स कहानी के पिछले भाग
मेरी सहेली चुद गयी नदी किनारे
में अब तक की आपने पढ़ा था कि मेरी सहेली सुरेश से चुदवाने की योजना बना चुकी थी और वो मुझसे रखवाली करने की कह कर वापस चली गई थी.

अब आगे Gaon Ka Desi Sex का नजारा:

उधर सुरेश और सुषमा की फुसफुसाहट भी मुझे सुनाई दे रही थी.
साफ तो नहीं, पर वो दोनों मुझे दिखाई दे रहे थे.

सुरेश ने अपनी लुंगी पत्थर के ऊपर बिछा दी थी. सुषमा ने उसके नजदीक पहुंचते ही उसका लिंग पकड़ लिया.

सुषमा फुसफुसाने वाली आवाज में बोली- ये तो लंड खड़ा हो गया है तुम्हारा, अब जल्दी से चोद लो.
सुरेश- ठीक से तैयार नहीं हुआ है, थोड़ा सा मुँह में लेकर चूसो न!

सुषमा- अभी नहीं, बाद में फुर्सत से कभी चूस दूँगी. अभी हाथ से हिला कर तैयार कर देती हूं. दूध चूसोगे मेरे तो जल्दी तैयार हो जाएगा. ब्लाउज खोल देती हूँ.
सुरेश- हां खोलो.

सुषमा एक हाथ से सुरेश का लिंग हाथ से हिला रही थी और उसने ब्लाउज खोल कर अपने स्तन बाहर निकाल दिए.

सुरेश ने झट से एक को पकड़ लिया और चूसते हुए बोला- बाप रे … पहले से भी ज्यादा बड़ा बड़ा सा लग रहा. ब्रा नहीं पहनी, ब्लाउज में संभल जाते हैं क्या?
सुषमा- बड़े हो गए हैं इसलिए तो ब्रा नहीं पहनती. बहुत कसा कसा सा लगता है. पसीना होने से और परेशानी होती है.

सुरेश- ब्लाउज में झूलता सा सामान दिखता है.
सुषमा- अब इस उम्र में सामान झूलेगा ही!

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ये हिंदी सेक्स कहानी आप HotSexStoriesPictures.Com पर पढ़ रहें हैं|

सुरेश- उम्म … पपीते जैसे है, एकदम पके हुए पपीते उम्म.
सुषमा- अब तुम्हारा लंड एकदम कड़क हो गया है. पहले से मोटा लग रहा है. चलो अब जल्दी से चोद लो.

सुरेश- ठीक है कैसे चोदूं?
सुषमा- मैं लेट जाती हूँ, तुम ऊपर आकर चोदो. बहुत दिन ने पति ने चोदा नहीं मुझे, मेरी चूत की फांकें आपस में जैसे चिपक सी गयी हैं.

सुरेश- तुम टांगें फैला दो, मैं थोड़ी देर चाट कर गीली कर देता हूँ, फिर लंड घुसाऊंगा.

सुषमा- अरे यार … तुम्हारे बहुत नाटक हैं. जल्दी घर भी लौटना है, फिर कभी फुर्सत से कर लेना न. आज थूक लगा कर काम चला लो.

सुषमा पत्थर पर बिछाई लुंगी के ऊपर लेट गयी.
उसने टांगें पत्थर के किनारों पर टिका कर फैला दीं.

सुरेश झुक कर उसकी योनि चाटता हुआ बोला- बस दो मिनट … बुर को पूरी गीली कर लेता हूँ. तुम्हारा मूड बना या नहीं?
सुषमा- अब चोदो भी न … चोदते चोदते बन ही जाएगा.

सुरेश- अगर मैं तुमसे पहले झड़ गया तो?
सुषमा- कोई बात नहीं झड़ जाओ, बाद में फिर अच्छे से चुदूँगी कभी. चलो अब घुसाओ लंड … बहुत चटाई कर ली.

उनकी ये फुसफुसाने की बातें सुन मेरे अन्दर भी चिंगारी … आग बनने लगी थी.
पर अभी मौका अच्छा नहीं था.

सुरेश ने सुषमा की जांघें पकड़ीं और लिंग में अच्छे से थूक लगा कर उसकी योनि से टिका कर जोर दे धक्का मार कर एक बार में ही लिंग योनि के भीतर घुसा दिया.

सुषमा कराह उठी- उई मैया … क्या कर रहा है तू ? ऐसे घुसाता है क्या कोई?
सुरेश- तुम ही तो बोली कि चूत चिपक सी गयी है … इसी लिए जोर से मारा. चल अब आराम से चोदता हूँ.
इतना कह कर सुरेश ने अपना लिंग सुषमा की योनि में अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.

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कुछ देर तक सुषमा चुपचाप धक्कों को सहती रही.
फिर 4-5 मिनट के बाद सुषमा धीमी आवाज में सिसकारने लगी.

इधर उनकी संभोग क्रिया देख मैं खुद उत्तेजित होने लगी.
मेरी योनि में भी पानी आने लगा और योनि की पंखुड़ियां फड़फड़ाने सी लगीं.

मैं बीच बीच में टॉर्च जला कर उन्हें देखती और पूछती और कितना समय लगेगा?
अपने हाथ से खुद ही अपनी योनि को साड़ी के ऊपर से मसलती और फिर ऐसे छोड़ देती मानो मेरे हाथ पर मेरा खुद का वश न चल रहा.

उधर सुषमा की मुँह से अलग आवाज आ रही थी और योनि से अलग.
हर धक्के पर वो ‘हम्म … आह … ओह्ह … इह … ’ कर रही थी. नीचे योनि ‘फच … फच … ’ कर रही थी.

तभी सुरेश ने कहा- मजा आ रहा तुम्हें?
सुषमा- हां, अब बहुत मजा आ रहा है, जोर जोर मार कर चोदो ना!

सुरेश- झड़ने वाली हो क्या?
सुषमा- चोदते रहो थोड़ी देर में झड़ जाऊंगी, पर जांघों में अकड़न होने लगी है. इतनी देर से फैला कर रखे हुई हूँ ना!

सुरेश- बकरी जैसी हो जाओ, फिर पीछे से मारता हूँ.
सुषमा- ठीक है, उठो.

इतना कह कर सुरेश और सुषमा अलग हुए और सुषमा बकरी की तरह झुक गयी.
सुरेश ने जल्दी से उसके पीछे आकर अपना लिंग उसकी योनि में प्रवेश करा दिया.

सुषमा- जोर जोर से और तेज़ी से धक्का मारो और तुम भी जल्दी झड़ो … आह देर हो रही है.
इतना कहना था कि सुरेश ने उसकी कमर पकड़ कर एक सुर में जो तेज़ी और पूरी ताकत से धक्का मारना शुरू किया.

सुषमा घोड़ी की तरह हिनहिनाने लगी मानो मुँह से जोर जोर से चीखना चाहती हो मगर आवाज दबा रखी है.

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उन्हें संभोग करते 15 मिनट से अधिक हो गये थे और इधर मेरी हालत अलग बुरी हुई जा रही थी.
दिन में भी मैं प्यासी रही और अब भी!

चाहती तो मैं भी उनके साथ जुड़ सकती थी, पर वहां निगरानी के लिए किसी को खड़ा होना पड़ता और मैं सुषमा के इस सफर में बाधा नहीं बनना चाहती थी.
वो चरमसुख के बहुत नजदीक आ गयी थी.
भले सुषमा बकरी बनी थी मगर आवाज घोड़ी की तरह निकाल रही थी.

अब तक औरतों को कुतिया घोड़ी बनते देखा था, आज बकरी बनते पहली बार देखा था.
मैं इतनी बेशर्मी से पहली बार गांव की औरत को संभोग करते देख रही थी.

खैर … संभोग में शर्म करने से मजा घट जाता है. क्या जवान लड़के लड़कियां संभोग के मजा लेते होंगे, जो मजा हम अधेड़ उम्र के लोग ले रहे थे.

सुषमा- रूको मत सुरेश, धक्का मारते रहो, झड़ने वाली हूँ.
सुरेश- हां मैं भी.

उसकी हांफने की आवाज और बात सुन मैं समझ गयी कि सुरेश के धक्के धीमे पड़ गए होंगे.

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थोड़ी और देर बाद सुषमा दबी आवाज में कराहती हुई बड़बड़ाने लगी- ओह मां … ओह मां … हो गया … हो गया … और जोर से और जोर से … आह पूरा घुसाओ पूरा घुसाओ … उईई मां … निकल गया मेरा.

सुरेश भी हांफता हुआ पूरी ताकत से उसे धक्के मारे जा रहा था. सुषमा की योनि से चिपचिपा पानी निकल रहा था काफी जिसकी वजह से लिंग अन्दर भीतर होते हुए फच फच की आवाजें निकाल रहा था.

कुछ ही पलों में सुरेश ने 2-3 जोर के धक्के मारे और सुषमा की पीठ पर गिर गया.
उसने सुषमा को जकड़ लिया और लिंग को उसकी योनि में धंसा कर गुर्राते हुए झटके खाने लगा.

समझ आ गया था कि सुरेश झड़ रहा और अपना वीर्य उसकी योनि में छोड़ रहा है.

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कुछ पलों के बाद दोनों अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे, साथ साथ बातें करने लगे.

चुदाई का खेल खत्म होता देख मैं भी उनके नजदीक पहुंच गयी.
दोनों अपने अपने कपड़े ठीक करते हुए बातें करने लगे.

सुरेश अपनी लुंगी लपेटते हुए कहने लगा- मजा आ गया यार, बहुत दिनों के बाद ऐसा मजा आया. तुम्हें मजा आया?
सुषमा अपनी योनि को पेटीकोट से वीर्य साफ करती और साड़ी ढंग से संवारती हुई बोली- हां मजा आया, मेरा भी बहुत दिन हो गया था. अभी जितने दिन रूकोगे, रोज चोदना मुझे!

मुझे पास देख सुषमा बोली- कोई इधर उधर दिख तो नहीं रहा था?

मैं- नहीं, कोई इस तरफ तो नहीं दिखा न किसी की आहट आयी. तुमको मजा आया? पानी छूटा तेरा?
सुषमा- हां रे निकल गया. मुझे लगा था कि मुझसे पहले सुरेश का निकल जाएगा.

सुरेश- अरे नहीं, मैं खुद कंट्रोल करके चोद रहा था, तुमको पहले झड़ जाने देना चाहता था. सारिका तुमको देख कर इच्छा नहीं हो रही थी?
मैं- होने से भी क्या है तुम दोनों को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी.

सुरेश- जीवन में पहली बार मैंने एक ही दिन में दो अलग अलग औरतों को चोदा. तुम दोनों मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो.
सुषमा- हम बचपन के दोस्त है साथ देंगे तुम्हारा. तुम खुश हो, ये हमारे लिए अच्छी बात है.

मैं- आखिर दोस्त ही दोस्त के काम आता है.
सुरेश- सारिका, रात को कुछ जुगाड़ हो पाएगा तो बोलो. तुमको भी झाड़ दूंगा.

मैं- नहीं, यहां कोई जोखिम नहीं उठाना. मौका मिलेगा तब ही करेंगे.
सुषमा- अरे मन है तो बोल, मैं कुछ उपाय लगा दूंगी. एक घंटे के अन्दर तो तुम दोनों का काम हो ही जाएगा.
मैं- नहीं, आज नहीं कल देखते हैं.

सुरेश- ठीक है कल का जुगाड़ लगाओ. अब मैं इस रास्ते जाऊंगा. तुम लोग उस रास्ते जाओ. तुम लोगों के बाद मैं निकलूंगा.

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सुषमा- ठीक है. तुम खुद को तैयार रख लो, रोज चोदना है हम दोनों को तुम्हें. कहीं कमजोर न पड़ जाना … ही ही ही ही.
सुरेश- अरे देखना कौन कमजोर पड़ेगा … ऐसा चोदूंगा कि चल-फिर नहीं पाओगी … हा हा हा. सारिका एक बार चूमने तो दो जाने से पहले, ये सुषमा कुछ करने ही नहीं देती. आज तो दो काम नहीं किया … बस चोदा है.

सुषमा- हां रे दे दे चुम्मी इस बेसब्र को!
मैं- ठीक है आओ.

सुरेश ने मेरे स्तनों को एक हाथ से पकड़ा और एक हाथ से मेरे चूतड़ को.
मैंने भी उसके गले में हाथ डाल दिया और हम दोनों चूमने लगे.

सुषमा ने टॉर्च साड़ी में दबा जला दिया ताकि ज्यादा रोशनी न आए और हमें देखने लगी कि कैसे चूम रहे हैं.

हम करीब दो मिनट चूमने के बाद अलग हुए.
हमें देख कर सुषमा बोली- एकदम फिल्मों में जैसे चूमते हैं, वैसे चूम रहे थे तुम दोनों!

सुरेश- तू भी दे ना चूमने!
सुषमा- अब भाग जल्दी … सब कर लिया. देर हो रही है.
सुरेश- कल तू भी चूमने देगी और मेरा लंड भी चूसना पड़ेगा तुझे!

सुषमा मेरा हाथ पकड़ आगे बढ़ती हुई घर की ओर बढ़ चली और बोली- ठीक है, अब कल देखते हैं. अगर मौका मिलेगा तो बुला लूँगी.
सुरेश- ठीक है. उधर कुछ जुगाड़ लग गया तो ठीक, नहीं तो शाम को इधर ही मिलेंगे.

सुषमा- ठीक … अब जा रहे हम लोग.

नदी के किनारे से आते ही हम लोग गांव जाने के रास्ते पर आ गए. दूर से गांव में मेले की तैयारी की रोशनी दिखने लगी.
अधेड़ उम्र की वजह से दोनों निश्चिन्त थीं कि कोई शक या सवाल नहीं करने वाला था. जो जवाब दे देंगे सब यकीन कर लेने वाले थे.

हम बातें करते हुए जाने लगे.

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सुषमा- सुरेश कोई दवा खाता है क्या?
मैं- मुझे नहीं पता. क्यों क्या हुआ?

सुषमा- इस उम्र में भी 30-35 साल के लड़के के जैसा चोदता है.
मैं- तजुर्बा है, कोई नौसिखिया नहीं हो जाता है … कोई कोई!

सुषमा- तुझे कितनी बार चोदा उसने? एक ही जगह रहती हो, बहुत बार चोदा होगा तुझे न?
मैं- नहीं, 8-10 बार चोदा है. मौका कहां मिलता है. तुझे कितनी बार चोदा?

सुषमा- आज मिलाकर 3 बार. मोटा लंड हो गया है उसका!
मैं- पता नहीं, मुझे तो नहीं लगा.

यही सब बातें करते हुए हम घर पहुंच गई.

आठ बजने को थे, सब अपने अपने काम में व्यस्त थे, किसी ने कोई सवाल नहीं किया.

फिर 8:30 के आस पास सभी मर्द घर के खाना खाने बैठ गए.
उनके बाद हम औरतें खाने बैठीं.

खाने के बाद मैंने भाभी के साथ बहुत देर बात की, फिर सोने चली गयी.

कमरे में आते ही मैंने साड़ी उतार दी, ब्लाउज और ब्रा को निकाल दिया और पैंटी उतारने की सोची.
तो याद आया कि पैंटी तो मेरी सुरेश ने पकड़ी थी, वहीं नदी के पास रह गयी होगी.

खैर … कोई फर्क नहीं पड़ता था. मैंने सभी दरवाजे खिड़कियां बन्द कर रखी थीं, बस पेटीकोट में ही बिस्तर पर गिर गयी.

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अब मेरी आंखों के सामने सुषमा और सुरेश का वो कामुक संभोग का चित्रण शुरू हो गया.
मुझसे रहा नहीं गया और अपने ही हाथ से खुद को शांत कर सो गई.

सुबह उठ कर नहा धोकर फुर्सत हो गयी नाश्ता करके मैं गांव घूमने निकल पड़ी.

रास्ते में देखा कि सुरेश अपने घर की छत पर लुंगी में टहल रहा था.
वो मुझे देख मुस्कुराया और मैंने भी उसे मुस्कुराते हुए देखा और आगे बढ़ गयी.

आगे सुषमा के घर पहुंची.
उसके भाई और पत्नी से मिली.
दोनों मुझसे छोटे थे उन्होंने पैर छुए और आशीर्वाद लिया.

मुझे घर में बिठा कर चाय पिलाई.
जब उनसे सुषमा के बारे में पूछा तो वो बोली- घर के पीछे आंगन में नहा रही थी.
उनसे कुछ देर बातें कर मैं सुषमा से मिलने चली गयी.

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आंगन में उनका बड़ा सा स्नानागार था.

दरअसल पहले उस जगह सिर्फ कुंआ था और लोग वहीं खुले में नहाते थे, जैसे कि आम गांव में लोग नदी तालाब या कुंए के किनारे नहाते हैं.

पर अब उसे दीवारों से घेर दिया गया था चारों तरफ से, जिससे नहाने के साथ कपड़े भी धोने और पानी के बड़े बड़े ड्रम के लिए काफी जगह थी.
कुंए में अब मोटर लगी थी. एक दरवाजा था, जिससे अन्दर जाते थे.

मैंने दरवाजे के बाहर से आवाज दी.
तो सुषमा ने कहा- अन्दर आ जाओ.

अन्दर गयी तो देखी कि जमीन पर बैठी सुषमा नहा रही थी.
बस वो पेटीकोट में थी, वो भी जांघों तक पेटीकोट से सिमटी हुई.

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काफी सालों के बाद मैं सुषमा को नग्न देख रही थी.
सुरेश सही कह रहा था कि उसके स्तन पपीते की तरह बड़े बड़े और झूल रहे थे.

सुषमा का कद लगभग मेरे जितना ही था मगर मुझसे अधिक मोटी होने की वजह से ज्यादा नाटी दिखती थी.
उसकी जांघें किसी हथिनी की तरह मोटी मोटी, बाजू भी पहलवानों की तरह … पर सुन्दर लग रही थी सांवले रंग में!

मैं वहीं बैठ गयी और बातें करने लगी.

नहाते हुए वो अपने पेटीकोट को उठा कर योनि साफ करने लगी और योनि में उंगली डाल मुझे इशारे से बताने लगी कि सुरेश का वीर्य सुबह तक थोड़ा थोड़ा टपकता रहा और अभी भी हल्का सा था.

मैं उसे देख कर हंस पड़ी.
उसकी योनि का तो पता ही नहीं चल रहा था, इतने बाल थे उसके ऊपर.

उसने मुझे अपनी पीठ रगड़ने को कहा तो मैंने उसकी पीठ साफ कर दी.

फिर नहा कर वो कपड़े पहन बाहर निकल आयी और हम दोनों उसके कमरे में चले गए.

हम अपनी इधर उधर की बचपन की बातें करने लगीं.

परिवार बच्चे यही सब बातें हो रही थीं.

आपको गाँव का देसी सेक्स कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं.
[email protected]

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