टैक्सी में मिली विधवा भाभी को ट्रेन में चोदा

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Xxx विडो हॉट कहानी में मैंने एक जवान विधवा को पहले ट्रेन में, फिर होटल के कमरे में दबा कर चोदा. एक शेयर टैक्सी में वो मुझे मिली थी.

दोस्तो, मैं नॉटी नावेद दोबारा से अपनी नई सेक्स कहानी के साथ हाज़िर हूँ.
ज़िंदगी की भाग दौड़ और मसरूफियत इंसान को कहां चैन लेने देती है. फिर भी आपसे दोबारा मिलने का वादा किया था, इसलिए दोबारा हाज़िर होना भी ज़रूरी था.

मुझे मेरी पहली कहानी के बाद तारीफों से भरे मेल मिले.
लेकिन मेरी कल्पना के अनुरूप वो बहुत ही कम थे.

मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और दोबारा आपकी सेवा में हाज़िर हो गया हूँ.

मैं पिछली सेक्स कहानी में अपने बारे में बता चुका हूँ कि मैं नार्मल सा दिखने वाला इंसान हूँ.
लेकिन काम देवता की अनुकम्पा हमेशा मुझ पर बनी रही और मैंने कई लड़कियों और औरतों के साथ सम्भोग का सुख प्राप्त किया.

लम्बे रिश्ते मैंने कम ही बनाए.
सामने वाली की इच्छा के अनुसार अगर उसने कभी दोबारा मिलने की इच्छा ज़ाहिर की, तब ही उससे मिलने की कोशिश की, अन्यथा चोदो और आगे बढ़ो की नीति का ही पालन किया है.

आज जो Xxx Widow Hot Kahani मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वो एकदम सच है. इसमें जरा सा भी झूठ नहीं है.
आपको पसंद आए तो ठीक नहीं … तो मुठ मारिए या चूत में उंगली करके पानी निकालिए और सो जाइए.

जैसा आपको बता चुका हूँ कि मैं जूते का व्यापारी होने के कारण अक्सर टूर पर रहता था.

इस बार भी मैं रांची जाने के लिए आगरा से सुबह सवेरे निकला.

रांची के लिए ट्रेन आगरा से नहीं मिलती है. उसके लिए मुझे आगरा से बीस किलोमीटर दूरी टूंडला जाना था.
उधर से मेरी प्रातः आठ बजे ट्रेन थी.

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जाने से पहले मैंने रांची में अपने रिश्तेदारों को खबर कर दी थी कि मैं आ रहा हूँ.
मैं सात बजे शेयरिंग टैक्सी के इंतज़ार में खड़ा था.

एक टैक्सी में बहुत ही मासूम और खूबसूरत भाभी मुझे दिखाई दी.
उसके बराबर में बैठा व्यक्ति मुझे लगा कि उसका पति है और एक बच्चा भी वहां था.

मैंने सोचा कि ये पटेगी तो क्या … पर आदत के मुताबिक कम से कम हाथ तो सेंकने को मिल ही जाएंगे.

मैं उस टैक्सी में बैठ गया.
मेरे बराबर में उसका पति (जो मुझे लगा था) वो था और उसके बाद वो भाभी बैठी थी.
टैक्सी चल दी.

मैंने आदत के मुताबिक अपना हाथ पीछे सीट पर टिकाते हुए उसके कंधे को हल्के से छुआ.
आपको बता दूँ औरत कोई भी हो, अगर वो घर से बाहर है, तो वो मर्द के हल्के से छूने से बता सकती है कि छूने में मर्द का क्या अभिप्राय है.

खैर … थोड़ी देर के बाद उसने झुक कर मुझे गुस्से से देखा.
मैं घबरा गया लेकिन फिर सोच कर संतुष्ट हो गया कि पति के होते वो कोई झगड़ा नहीं करेगी.
इसलिए सुकून से बैठ गया.

मेरी आदत है कि अगर पहले टच में अगर कोई स्त्री गुस्सा करे तो मैं दूसरी कोशिश नहीं करता.
लेकिन पता नहीं उसमें क्या जादू था कि मैं अपने को रोक न पाया.

अबकी बार मैंने हिम्मत करके उसकी ब्रा का स्टेप उसके कंधे पर हाथ रख कर थोड़ा सा खींच दिया.
इस बार कोई प्रतिकिया नहीं आई.

मैं थोड़ा सा संतुष्ट हुआ कि आधा घंटा का रास्ता आराम से कट जाएगा.

तभी उसकी खनकती हुई आवाज़ आई.
वो ड्राइवर से पूछ रही थी- भैय्या कानपुर के लिए ट्रेन फ़िरोज़ाबाद से ही मिलेगी न!

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मेरे कान एकदम से खड़े हुए. इसका एक मतलब ये भी था कि वो अकेली थी.

मैंने बिंदास पूछा- आपको कानपुर जाना है क्या?
तो वो बोली- हां.

इस पर मैं बोल पड़ा कि आप ट्रेन टूंडला से क्यों नहीं पकड़ रहीं. वहां ज़्यादा ट्रेनों का स्टॉपेज है और मैं जिस ट्रेन से रांची जा रहा हूँ, वो कानपुर होते हुए जाती है. मेरा रिजर्वेशन भी है. आप मेरी सीट पर आराम से बैठ कर चलिए.
वो बोली- ठीक है.

यक़ीन करना दोस्तो, मुझे ऐसा लगा कि आज तो ज़िंदगी की हर तमन्ना पूरी हो जाएगी.
मैं एक अलग ही अंदाज में उड़ने लगा.

फिर टूंडला पहुंच कर जब मैं उतरा तो वो मेरे साथ ही उतरी.

उसके हाथ में दो सूटकेस थे जो लगभग खाली ही थे.
वहां पहुंच कर पता चला कि ट्रेन एक घंटा लेट है.

वो बोली- चाय पी लेते हैं.
हम लोग चाय पीते हुए बात करने लगे.

उसने पूछा- तुम रांची क्यों जा रहे हो?
मैंने उसे बताया कि मैं बिजनेस टूर पर जा रहा हूँ.

मेरे पूछने पर उसने बताया कि वो राजस्थान किसी काम से गई थी. वहीं से वापस आ रही है.
उससे बहुत सी बातें हुईं.

उसने बताया कि वो विधवा है. उसके पति का कई साल पहले देहांत हो गया था इसलिए अब वो अपने परिवार को पालने के लिए खुद मेहनत करती है.

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यहां मैं ये नहीं बताऊंगा कि वो क्या काम करती थी. मैं उसकी निजता का सम्मान करूंगा.

जब मैंने उसे ग़ौर से देखा तो यकीन कीजिए वो मुझे किसी अप्सरा से कम नहीं लगी.
साढ़े पांच के करीब की हाइट, दूध में केसर मिला हुआ रंग … और भरपूर सुडौल बदन.
उसके मम्मों का साइज़ 34B का था.

वो साड़ी में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी.

असल में सबसे प्यारी उसकी सादगी थी एक तो गांव का खान-पान और पहनावा और कयामत ढाता उसका जोबन.
मैं बस यही सोच रहा था कि इसका और मेरा साथ सिर्फ 3 से 4 घंटे का है.

काश मैं इसे पूरी तरह भोग पाता तो क्या बात थी.
खैर … ट्रेन आई और हम दोनों उसमें बैठ गए.
मेरी विंडो साइड की सीट थी तो मैंने उसे खिड़की के पास बैठाया और खुद उसके बराबर में बैठ गया.

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अब शुरूआत उसने की और पूछा- तुमने रास्ते में मेरी ब्रा का स्टेप क्यों खींचा था?
मैंने पूछा- क्या तुमको इस बात का बुरा लगा?
वो बोली- अगर बुरा लगा होता तो क्या मैं तुम्हारे साथ यहां बैठी होती?

बस यह सुन कर मेरे दिल और पैंट दोनों में हलचल शुरू हो गई.
मैंने पीछे से हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ खींचा.
उसने भी जैसे अपने बदन को छूने की पूरी इजाजत दे दी.

मैंने अपना हाथ उसके बूब पर रखा, ऐसा लगा जैसे उसे कोई नशा सा हो गया.

बूब्स पर मैंने जब दबाव बनाया तो वो पूरी तरह मुझसे चिपक सी गई.
दोस्तो, पता नहीं उस वक़्त पास बैठे यात्रियों की न उसको परवाह थी और न मुझे … अजीब सी खुमारी दोनों पर हावी थी.

अब मैं उसकी गोद में सर रख कर लेट गया.
उसने अपनी शॉल से हम दोनों का चेहरा ढकते हुए होंठों से होंठ मिला दिए.
उफ्फ़ … क्या नशा था उसकी इस लिपलॉक में!

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मैं जैसे सातवें आसमान पर था.
आज सोचता हूँ तो अजीब सा लगता है कि आखिर साथ में बैठे यात्री हम दोनों के बारे में क्या सोच रहे होंगे.
लेकिन उस वक़्त हमको किसी की भी परवाह नहीं थी.

जिस्म की गर्मी दिमाग़ पर हावी होने लगी थी.
दोनों को ऐसा लग रहा था कि अभी एकांत मिल जाए और दोनों एक दूसरे में समा जाएं.

खैर … इस सबमें कानपुर आने का वक़्त हो गया.
हम दोनों को बिछड़ने का दुख था.

मैं बोला- तुम मेरे साथ रांची चलो, एक दो दिन में लौट आना.
इस पर वो बोली- मुझे कानपुर में बहुत जरूरी काम है इसलिए मैं नहीं जा सकती.

इसके बाद फिर से वही खेल शुरू हो गया.
कानपुर पहुंचते पहुंचते वो बहुत गर्म हो गई और बोली- भाड़ में गया काम … तुम मेरा टिकट लेकर आओ. मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ और कल वापस आ जाऊंगी.

कसम से मुझे अपने नसीब पर विश्वास ही नहीं हुआ.
इलाहाबाद तक वो बिना टिकट ही गई.
वहां पहुंचते ही मैं टिकट ले आया क्योंकि वहां आधा घंटा ट्रेन रुकती है.

रांची पहुंचने का टाइम दूसरे दिन 12 बजे का था.

रास्ते में उसने अपने बारे में और मैंने अपने बारे में बहुत कुछ बताया.
रात होते होते ट्रेन लगभग खाली हो गई.

हम दोनों साइड लोअर सीट पर एक हो कंबल में लेट गए.

दोनों के जिस्म बुरी तरह जल रहे थे; दोनों जैसे एक दूसरे में समाने के लिए आतुर थे.

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यहां अपना काम होना कोई मुश्किल भी नहीं था क्योंकि उसने साड़ी पहनी हुई थी.
मैंने कंबल के अन्दर ही उसकी साड़ी ऊपर की तो वो नीचे कुछ भी नहीं पहनी हुई थी.

जैसे ही मैंने उसकी चूत को छुआ उसकी सिसकारी निकल गई.
उसकी चूत पर जब लंबे लंबे बालों का मुझे अहसास हुआ तो मैंने उससे उसके बारे में पूछा.

वो बोली- ज़िंदगी की भागदौड़ में मौका ही नहीं मिलता इनको बनाने का … और फिर किसके लिए बनाऊं … पति है नहीं. हर किसी पर मुझे विश्वास करने की आदत नहीं. अब तुम ही अपने हाथों से इनको साफ कर देना.

बातों में वक़्त ज़ाया न करते हुए जैसे ही मैंने उसकी चूत में अपनी उंगली डाली, तो दोस्तो, यकीन करना मानो जलता हुआ अंगारा भी शायद ठंडा लगे.

उसकी सिसकारियां बढ़ने लगीं आस पास के यात्री या तो सो रहे थे या हमारी ढकी हुई ब्लू फिल्म देख रहे थे.

उनका ख्याल करते हुए मैंने उसको चुप रहने को कहा.
इतनी देर में वो बोली- अब इसे उंगली नहीं, तुम्हारे लंड की जरूरत है. किसी की परवाह न करो और मेरे अन्दर समा जाओ. नहीं तो मैं मर ही जाऊंगी.

दोस्तो, मुझे कुछ झूठ तो नहीं लिखना इसलिए मैं यह नहीं कहूँगा कि हम दोनों ने एक दूसरे की अंगों को चाटा और चूसा … और न यह कहूँगा कि पहला राउंड एक दूसरे का पानी छुड़ा कर संतुष्ट कर पूरा किया.
मैं अपनी पैंट को नीचे करता हुआ उसके ऊपर आ गया. इस वक़्त न सहयात्रियों की परवाह थी और न किसी और की. बस दोनों अपनी प्यास किसी भी तरह बुझाना चाहते थे.

उसने अपने हाथ से मेरे लंड को अपनी चूत पर सैट किया और मैं उसके अन्दर समाता चला गया.

उसकी चूत बिल्कुल ऐसी थी, जैसा उसने बताया था. मतलब साफ लग रहा था कि वो कई दिन से चुदी नहीं है.

चूत की दीवारों से घर्षण करता हुआ मेरा लंड अन्दर जाता गया.
उसने नीचे से और मैंने ऊपर से धक्के लगाने शुरू किए.

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हमारा यह खेल बहुत लंबा तो नहीं चला लेकिन दोनों संतुष्ट जरूर हुए.

जो सेक्स को लेकर ऊल जलूल नहीं हांकते, वो अच्छी तरह जानते हैं. इतनी देर से एक दूसरे को रगड़ कर गुजारने और सह यात्रियों के डर से कितनी देर सेक्स कर सकते हैं.
फिर हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सो गए.

बारह बजे हम रामगढ़ उतरे.

वहां से टैक्सी पकड़ कर दो बजे रांची पहुंचे.
होटल में रूम बुक किया.
कमरे में आते ही हम दोनों एक दूसरे पर जैसे टूट ही पड़े.

उसके सब कपड़े उतारने का भी इंतजार नहीं हुआ.

मैंने फिर से उसकी साड़ी ऊपर करके अपनी पैंट आधी नीचे की और जैसे उसमें पूरा ही समा जाने को आतुर हो गया.
उसकी चूत अभी भी किसी भट्टी की तरह तप रही थी.

अभी 5 मिनट ही हुए थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया और बोला कि रजिस्टर पर साइन नहीं किए हैं. बाहर आकर पहले साइन कीजिए.

मैंने अनमने मन से उसकी चूत से अपने लंड को बाहर करके पैंट को ऐसे ही ऊपर चढ़ाया और बाहर आया.

रिसेप्शन पर साइन करके मैं तीर की तरह दोबारा अन्दर आया.
जब तक वो अपने पूरे कपड़े उतार चुकी थी.

मैंने भी अपने कपड़े ऐसे फेंके, जैसे एक मिनट भी रुका तो वो भाग जाएगी.

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फिर जो हुआ, वो तूफ़ानी था.
उस दिन मैंने सबसे लंबी पारी खेली.

हम दोनों पूरी तरह संतुष्ट होकर ही अलग हुए.
जब अलग हुआ तो उसकी चूत से खून निकल रहा था.

इस पर वो बोली- यह इस बात का प्रमाण है कि मैंने सालों से किसी के साथ सेक्स नहीं किया.
मैंने कहा- मुझे तुम पर पूरा विश्वास है और रिश्तों में कभी किसी को प्रमाण देने की जरूरत नहीं.

Xxx विडो हॉट के बाद उसका और मेरा कुछ जज्बाती रिश्ता सा हो गया.
इसके बाद हम लोगों ने नहा कर खाना खाया और सोने को आ गए.

यहां मैं आपको बता दूँ कि रांची में मेरे रिश्तेदार होने के कारण मैं अपनी रात होटल में नहीं बिता सकता था.
फिर मेरे रिश्तेदारों को मालूम भी था कि मैं रांची आया हुआ हूँ.

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रात को मैं उससे विदा लेकर अपने रिश्तेदार के यहां चला गया.
दूसरे दिन मैंने उसे रांची से कानपुर के लिए ट्रेन में बैठा दिया लेकिन उसकी और मेरी कहानी यहां खत्म नहीं हुई.

इस रिश्ते में बहुत कुछ हुआ.
अगर आपके मेल मुझे मिले और आपने मेरी इस Xxx विडो हॉट कहानी को पसंद किया तो आगे बहुत कुछ है मेरे पास उसकी कहानी लिखने को.
आपके जवाब की प्रतीक्षा में आपका अपना नॉटी नावेद.
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