डाकिया का इंतजार हर दिन रहता

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जून का महीना था और गर्मी अपने पूरे उफान पर थी दोपहर के वक्त तो इतनी लू चलती कि यदि कोई बाहर होता तो गर्मी से उसके मुंह का रंग ही उड़ जाता और पसीने से तो बुरा हाल ही था। मैं सोचने लगी इस गर्मी में भी जो व्यक्ति काम करते होंगे उन लोगों का क्या हाल होता होगा मैं सोच ही रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी। मैंने अपने दीवार पर टंगी हुई घड़ी की तरफ देखा तो उस वक्त समय 1:05 हो रहा था और उस चिलचिलाती गर्मी के बीच में घंटी बजी तो मैं बाहर गई मैंने जब दरवाजा खोला तो खाकी रंग के कपड़े में एक व्यक्ति खड़ा था। मैंने उससे पूछा हां भैया कहिए क्या काम था वह मुझे कहने लगा क्या यह विजय मेहता का घर है मैंने उन्हें कहा हां यह विजय मेहता का ही घर है। वह कहने लगा उनकी एक डाक आई थी मुझे वही देनी थी मैंने उस डाकिया से कहा भैया आप अंदर आ जाइए बाहर बहुत गर्मी हो रही है।

 वह डाकिया मुझे कहने लगा अरे मैडम यह तो मेरा रोज का काम है क्या गर्मी और क्या ठंड काम तो करना ही है मैंने उसे कहा हां वह तो मैं समझ रही हूं लेकिन फिर भी आप अंदर आ जाइए। मैंने उससे अंदर आने के लिए आग्रह किया तो वह भी अंदर आ गया जब वह अंदर आया तो मैंने उन्हें शरबत का एक गिलास पिलाया। वह मुझे कहने लगे अरे मैडम आपने तो मेरे ऊपर बहुत बड़ा एहसान किया इस गर्मी में यदि ठंडा शरबत मिल जाए तो मजा ही आ जाता और आपने तो मेरी इच्छा पूरी कर दी। मैंने उससे कहा कोई बात नहीं भैया आप थोड़ी देर आराम कर लीजिए, वह थोड़ी देर बैठ कर गया और मुझे कहने लगा मैं आपको डाक दे देता हूं। उन्होंने मुझे डाक दिया और मैंने उसके बाद उन्हें कहा बाहर बहुत गर्मी हो रही होगी वह कहने लगे पूछो मत कितनी गर्मी हो रही है रोड़ पर स्कूटर चलाना भी मुश्किल हो गया है। मैंने जब अपने मोबाइल में टेंपरेचर चेक किया तो मालूम पड़ा उस दिन 45 डिग्री से ऊपर टेंपरेचर चल रहा था वह डाकिया उसके बाद मुझे कहने लगे अब मैं आपसे इजाजत लेता हूं दोबारा आप से कभी मुलाकात होगी। मैंने उन्हें बता दिया कि कभी कोई डाक आये तो आप यहां पर ले आया कीजिए वैसे भी सारी डाक पर मेरे पति का ही नाम लिखा होता है।

 उस डाकिया से मेरी अच्छी बातचीत हो चुकी थी और उनका नाम मदन था। जब वह डाकिया चले गए तो मैंने भी अपने कूलर के बटन को ऑन किया और उसके सामने अपना सर रख कर मैं लेट गई। मुझे मालूम ही नहीं पड़ा कि कब मुझे नींद आ गई मेरी जब आंख खुली तो मैंने देखा मेरी दो वर्ष की बच्ची अंदर रो रही है मैं उठकर उसके पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया। मैं उसे चुप कराने लगी लेकिन वह चुप हो ही नहीं रही थी फिर मैं उसे बाहर कमरे में ले आई और कुछ देर मैन उसे कूलर के सामने रखा तो वह फिर दोबारा से सो गई और मैंने उसे वहीं सुला दिया। घर पर मैं अकेली ही थी क्योंकि उस वक्त मेरे सास और ससुर गांव गए हुए थे वह लोग गांव जाते रहते थे शाम के वक्त विजय अपने ऑफिस से लौटे मैंने विजय से कहा आपकी कोई डाक आई है। वह कहने लगे मैं कितने दिनों से इस डाक का इंतजार कर रहा था और यह वही है मैंने विजय से कहा हां मुझे तो आज ही मिली दोपहर के वक्त एक डाकिया आए थे उन्होंने मुझे यह डाक दी। मैंने उन्हें अंदर बैठा के शरबत पिलाया और उसके बाद वह चले गए। उन्होंने जब वह डाक खोली तो मैंने उनसे पूछा क्या यह डाक तुम्हारे लिए बहुत जरूरी थी। वह कहने लगे हां इस डाक का इंतजार मैं काफी समय से कर रहा था मेरे एक परिचित हैं उनके घर से कुछ पेपर आने वाले थे तो उन्होंने मुझे कहा कि तुम अपने घर पर ही मंगवा लेना। अब तक वह पेपर आए नहीं थे तो इसके माध्यम से वह सारे पेपर मुझ तक पहुंच चुके हैं, मैंने कहा चलिए यह तो अच्छा हुआ कि आप तक यह पहुंच गये। मैंने उन्हें कहा मैं आपके लिए खाना बना देती हूं वह मुझे कहने लगे नहीं मैं अभी थोड़ी देर बाद आता हूं। पता नहीं वह कहां बड़ी जल्दी में गए और करीब तीन घंटे बाद घर लौट जब वह लौटे तो उन्होंने मुझे कहा ममता तुम मेरे लिए खाना बना दो।

 मैंने विजय के लिए खाना बनाया हुआ था उन्होंने खाना खाया और वह खाना खाकर सो गए। उसके अगले दिन वह सुबह जल्दी ही ऑफिस के लिए निकल गए मैंने कहा आप टिफिन तो लेकर जाइए वह कहने लगे नहीं आज रहने दो आज हम लोग अपने ऑफिस के बाहर ही खाना खा लेंगे। वह बड़ी जल्दी में चले गए मैं और मेरी दो वर्ष की बेटी ही घर पर थे मैंने सोचा मैं थोड़ी देर टीवी देख लेती हूं। मैंने टीवी ऑन की तो उसमें मेरा मनपसंद का सीरियल आ रहा था मैं वह देखने में इतनी व्यस्त हो गई कि मुझे कुछ पता ही नहीं चला। मैंने चूल्हे में दूध रखा हुआ था जैसे ही वह सीरियल खत्म हुआ तब मुझे ध्यान आया कि मैंने चूल्हे में दूध रखा था मैं दौड़ती हुई किचन की तरफ गयी, मैंने पतीले की तरफ देखा तो पतीला पूरी तरीके से खाली हो चुका था और वह नीचे से जल चुका था। मैंने उस पतीले को चूल्हे से निकाला तो वह बहुत गर्म था फिर मैंने सोचा की मैं और दूध ले आती हूं। मैं घर से छाता लेकर निकली उस वक्त बहुत ही लू चल रही थी हमारे गली में मुझे कोई नजर ही नहीं आ रहा था मैंने देखा कि दुकान भी बंद है मैंने सोचा थोड़ा और आगे जाकर देखती हूं क्या पता कोई दुकान खुली हो। मैं करीब आधा किलोमीटर आगे चली आई तो मैंने देखा दुकान खुली हुई थी मैंने उन्हें कहा भैया एक पैकेट दूध का देना उन्होंने मुझे एक पैकेट दूध दे दिया उसके बाद में वहां से घर चली आई। घर आते-आते मेरा पसीने से बुरा हाल हो चुका था गर्मी इतनी ज्यादा थी कि मैंने सोचा मैं नहा लेती हूं मैं नहाने के लिए चली गई। उसके बाद जब मैं नहा कर बाथरूम से बाहर निकली तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे नहा कर थोड़ा सा आराम मिला हो उसके बाद मैं अपनी बेटी को सुलाने लगी।

 वह भी सो चुकी थी और मैं भी उसके बगल में लेट गई मैं जब शाम के वक्त उठी तो मैंने देखा उस वक्त करीब 5:00 बज रहे थे 5:00 बजे का समय था मैंने सोचा कि मैं अपने लिए चाय बना देती हूं। मैंने अपने लिए चाय बनाई, मैं चाय पी रही थी कि हमारे पड़ोस की आंटी जी हमारे घर पर आ गई वह जब घर पर आई तो मैंने उन्हें कहा कि आप बिल्कुल सही समय पर आई हैं मैं आपके लिए भी चाय बना देती हूं। मैंने उनके लिए भी चाय बनाई उस दिन हम लोग बैठ कर बातें कर रहे थे वह मेरे साथ दो घंटे तक बैठी और उसके बाद वह चली गई। शाम के वक्त विजय आये और मैंने उन्हें पानी का गिलास दिया वह काफी थके हुए नजर आ रहे थे वह मुझे कहने लगे तुम थोड़ी देर बाद मेरे लिए खाना बना देना मैं जल्दी सो जाऊंगा मुझे काफी नींद आ रही है। मैंने उनके लिए खाना बना लिया और वह उस दिन जल्दी ही सो गए और सुबह जब वह अपने ऑफिस के लिए निकल रहे थे तो उन्होंने मुझे कहा कि यदि मेरा कोई डाक आये तो तुम उसे ले लेना। मैंने विजय से कहा ठीक है मैं ले लूंगी और यह कहते हुए वह चले गए। उस दिन मेरा दोपहर के वक्त ना जाने सेक्स करने का मन क्यों होने लगा मैंने विजय को फोन भी किया तो विजय कहने लगे मैं अभी ऑफिस में बिजी हूं तुमसे बाद में बात करता हूं लेकिन मेरी जवानी तो आग उगल रही थी।

गर्मी बहुत ज्यादा थी तभी दरवाजे की बेल बजी मैंने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने वही डाकिया था मैंने उसे अंदर बुला लिया और कहा आईए ना अंदर बैठिए। वह भी अंदर आ गया मेरे कुछ ज्यादा ही इच्छा हो रही थी तो मैंने उससे कहा क्या आज भी कोई डाक आई हैं? वह कहने लगा हां मैं डाक लेकर आया हूं मैं अपने पल्लू को सरकाने लगी और वह मेरे स्तनों की तरफ देखने लगा आखिरकार वह भी अपनी लंगोट को कितनी देर तक संभाल कर रखता। उन्होंने भी अपनी लार टपकानी शुरू कर दी थी जैसे ही उन्होंने अपनी लार टपकानी शुरू की तो मैंने भी अपने ब्लाउज के बटन को खोल दिया, उसके बाद में उनकी गोद में जाकर बैठ गई। डाकिया ने कहा कसम से आज तो मेरी किस्मत ही खुल गई मैंने उसे कहा लो मेरे स्तनों से आज शरबत पी लो। वह मेरे स्तनों को चूसने लगा और उसे बड़ा अच्छा लगने लगा वह मेरी गर्मी को शांत करने की ओर बढ़ रहा था। जब मैंने उसे कहा बेडरूम में चलते हैं तो हम दोनों बेडरूम में चले गए जैसे ही उसने मेरी साड़ी को ऊपर करते हुए मेरी योनि को चाटना शुरू किया तो मुझे भी अच्छा लगने लगा।

मेरी योनि से पानी बाहर की तरफ निकलने लगा मेरी योनि से इतना ज्यादा पानी बाहर निकलने लगा था कि मैंने उसे कहा तुम मैं तड़पती हुई चूत को शांत कर दो। उसने भी अपने मोटे से लंड को मेरी चूत के अंदर डाल दिया और मेरे स्तनों को चूसने लगा उसका लंड मेरी योनि के अंदर तक जा चुका था और मेरे मुंह से हल्की सी आवाज निकली लेकिन मुझे उसके साथ संभोग करने में बड़ा मजा आ रहा था। जिस प्रकार से डाकिए ने मेरी इच्छा को पूरा किया तो मैं बहुत ज्यादा खुश हो गई और उसी से मैं अब अपनी इच्छा पूरी करवानी चाहती थी। जब भी वह डाक लेकर आता तो मेरे साथ सेक्स जरूर किया करता था मैं भी उसका इंतजार करती रहती कि कब वह आए। अब गर्मी खत्म होने लगी थी और सर्दियों का मौसम आ चुका था एक दिन डाकिया मेरे पास आया और कहने लगा मैं डाक लाया हूं। मैंने उसे कहा तो आ जाओ आज ठंड भी काफी है उस दिन हम लोगों ने ठंड में गर्मी का एहसास किया।