मेरा नाम दीपक है और मैं राजस्थान में रहता हूं, मैं राजस्थान के जोधपुर में रहता हूं और वहीं पर नौकरी कर रहा हूं। मुझे यहां नौकरी करते हुए काफी समय हो चुका है क्योंकि जब मेरी पढ़ाई पूरी हुई उसके बाद से ही मैं यहां पर नौकरी लग चुका था। मेरी मां और पिताजी बरेली में रहते हैं और वह लोग मेरे बड़े भाई के साथ रहते हैं। उसकी शादी को दो वर्ष हो चुके हैं परंतु उन लोगों की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती और उनकी पत्नी हमेशा ही मेरे पिताजी और मां से झगड़ा करती रहती हैं। वह मुझे हमेशा ही फोन कर देते हैं और कहते हैं कि हम लोग बहुत ही परेशान हो चुके हैं लेकिन मुझे लगता था कि शायद वह लोग सुधर जाएं क्योंकि मैंने अपने भाई गौरव से इस बारे में बात भी की थी वह फिर भी हमेशा मेरी बात को किसी ना किसी प्रकार से टाल देता था और कहता था कि मैं पिताजी और मां का बहुत अच्छे से ध्यान रख रहा हूं लेकिन मैंने उसे कई बार समझाया कि जब तुम्हारी पत्नि मां से झगड़ा कर रही हो तो तुम अपनी पत्नी को इस बारे में क्यो नहीं समझाते हो।
गौरव हालांकि मुझसे बड़ा था लेकिन वह बिल्कुल भी इस बात को समझता नहीं था, इसी वजह से मुझे अपने भाई पर बहुत ही गुस्सा आता था क्योंकि वह अपनी पत्नी का ही पूरा साथ देता था और हमेशा ही उसकी बहुत तरफदारी करता रहता था। मैं उसे कहता था कि तुम्हारे लिए पिताजी ने इतना कुछ किया है उसके बाद भी तुम उनके साथ इस प्रकार का बर्ताव कर रहे हो और अपनी पत्नी को बिल्कुल भी समझाने का तुम्हारे पास वक्त नहीं है। मैं जब भी अपने काम में होता तो मैं अपने माता पिता के बारे में ही सोचता रहता था और सोचता था कि वह लोग कितने परेशान होंगे, क्योंकि मेरे भाई की गलती की वजह से यह सब समस्याएं हो रही थी, इस वजह से मैं हमेशा ही उन्हें फोन कर देता था और उनका हाल-चाल पूछ लेता था। मैं जब भी उन्हें फोन करता तो वह कहते कि हम लोग अच्छे हैं और अच्छे से ही हम लोग रह रहे हैं। मुझे बहुत ही अच्छा लगता था जब मैं उन लोगों से बात करता था लेकिन मेरी मजबूरी ऐसी थी कि मैं घर नहीं जा सकता था।
मैं जिस जगह पर नौकरी कर रहा हूं वहां से मुझे छुट्टियां बहुत ही कम मिलती है और उन लोगो ने मुझे रहने के लिए अच्छा घर भी दिया हुआ है और मेरी तनख्वाह भी बहुत अच्छी है इसलिए मैं नहीं चाहता था कि यह नौकरी मैं छोड़ दूं और मैं अब जोधपुर के बारे में सब कुछ जानता भी था इसीलिए मैं यहां पर काम भी कर पा रहा था लेकिन एक बार मेरी भाभी ने मेरे माता-पिता को घर से ही निकाल दिया और मेरा भाई कुछ भी नहीं कह रहा था। मैंने जब उसे फोन किया तो मैंने उसे कहा कि तुमने एक बार भी नहीं बोला कि तुम्हारी पत्नी ने पिताजी और मां को घर से निकाल दिया है, मुझे जब उन्होंने फोन किया तो उसके बाद ही मुझे सूचना मिली। मैंने तुरंत ही अपने ट्रेन की टिकट बुक करवाई और सीधा घर पहुंच गया। जब मैं घर पर गया तो मेरे माता-पिता मेरे चाची लोगों के घर पर थे, मुझे उन्हें देखकर बहुत ही बुरा लग रहा था और उसके बाद मैं अपने भाई के पास चला गया। मैं जब अपने भाई के पास गया तो मैंने उसे बहुत ज्यादा खरी-खोटी सुनाई और उसे कहा कि यदि तुम अपने मां बाप का भी ख्याल नहीं रख सकते तो तुम जिंदगी में क्या करोगे। उसका ईमान बिल्कुल ही खत्म हो चुका था और उसके अंदर कुछ भी नहीं बचा था। वह सिर्फ अपनी पत्नी की सुनता था जिस वजह से उसने अपना रिश्ता खत्म कर लिया था और मैं दो-तीन दिन गांव में ही रहा मेरे चाचा चाची बहुत ही अच्छे हैं उन्होंने ही मेरे माता-पिता को अपने साथ रखा। मेरी चाची भी कहने लगे कि गौरव की पत्नी का व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नहीं है वह किसी से भी सीधे मुंह बात नहीं करती और हर किसी से सिर्फ झगड़ा ही करती रहती है इसी वजह से गौरव के पास कोई भी जाना पसंद नहीं करता था। उसकी पत्नी तो बहुत ही ज्यादा झगड़ालू किस्म की औरत है, उसे हमारे यहां पर कोई भी पसंद नहीं करता था और हमारे गाँव में तो सब लोगों उससे दूर ही रहते थे।
मैं अपने माता पिता को अपने साथ राजस्थान ले आया और जब मैं उन्हें अपने साथ लाया तो वह लोग कुछ दिनों तक एडजेस्ट ही नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि उनके लिए वह नई जगह थी लेकिन धीरे-धीरे उन लोगों को आदत होने लगी और अब मेरे माता पिता हमेशा शाम को टहलने के लिए निकल जाया करते थे। उन्हें भी अब लोग पहचानने लगे थे और वह बहुत ही अच्छे से मेरे साथ समय बिता रहे थे। मुझे भी बहुत खुशी हो रही थी कि वह लोग मेरे साथ ही रहते हैं जिस वजह से मैं बहुत खुश था। मैंने जब उन्हें बताया कि आप लोगों के आने से मैं बहुत ही खुश हूं तो वो कहने लगे कि तुम्हारे भैया के बारे में जब भी हम सोचते हैं तो हमें बहुत ही बुरा लगता है वह पता नहीं किस प्रकार से अपनी पत्नी के साथ समय बिताएगा। मैंने अपने पिताजी से कहा कि आप को उसके बारे में सोचने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है यदि उसने सही समय पर अपनी पत्नी को समझा दिया होता तो शायद आज यह नौबत ना आती और ना ही वह आप लोगों को घर से इस प्रकार से बेइज्जत करके निकालती।
मैंने अपने माता पिता से कह दिया था कि मुझे उन लोगों का ना तो आज के बाद घर में नाम सुनना है और ना ही मुझे उनसे कोई रिश्ता रखना है, उसके बाद मेरे पिताजी की और मैंने कभी भी मेरे भाई और भाभी के बारे में जिक्र नहीं किया। वह लोग मेरे साथ बहुत ही खुश थे और हमेशा ही कहते थे कि तुम बहुत ही अच्छे हो। मैं जिस कंपनी में नौकरी करता था उसी कंपनी में एक लड़की काम करने के लिए आई, उसका नाम सुमन है। जब सुमन शुरू में आई तो मुझे वह थोड़ा घमंडी किस्म की लगती थी लेकिन धीरे-धीरे जब उसे ऑफिस में काफी दिन हो गए तो वह जब बात करने लगी तो मुझे उससे बात कर के बहुत अच्छा लगने लगा, क्योंकि वह बहुत ही सभ्य तरीके से बात करती थी लेकिन उसके बात करने का तरीका थोड़ा तेज था इसी वजह से मैं शायद अपने दिमाग में गलत धारणा बना बैठा था, परंतु वह उस प्रकार की बिल्कुल भी नहीं थी जिस प्रकार से मैं उसके बारे में सोच रहा था। मेरी और सुमन की बात बहुत ही अच्छे से होती थी। जब मैंने सुमन से उसका घर का पता पूछा तो वह कहने लगी कि मैं यहां पर अपने भैया और भाभी के साथ रहती हूं। अब सुमन ने भी मुझ से पूछ लिया तो मैंने उसे बताया कि मैं अपने माता-पिता के साथ यहां रहता हूं और जब सुमन मेरे घर पर मेरे माता-पिता से मिलने आई तो वह उनसे मिलकर बहुत खुश हुई और कहने लगी कि तुम्हारे माता-पिता तो बहुत ही अच्छे हैं और मेरे माता-पिता भी उसे मिलकर बहुत खुश हुए। सुमन और मैं अक्सर ऑफिस के बाद भी कुछ देर हमारी ऑफिस की कैंटीन में ही बैठ जाते थे और वह मुझसे काफी देर तक बातें करती थी। अब मैं ही उसे उसके घर तक छोड़ने के लिए जाता था और हमेशा ही मैं उसके घर पर उसे छोड़ कर आता था। सुमन ने मुझे अपने भैया और भाभी से भी मिलवाया। वह लोग बहुत ही अच्छे थे और बहुत ही अच्छे नेचर के थे। सुमन के भैया भी एक अच्छी जॉब पर है वह हमेशा ही मुझसे मिलकर बहुत खुश होते हैं। एक दिन मैंने उन्हें अपने घर पर भी बुला लिया था और वह मेरे माता-पिता से मिलकर बहुत खुश हुए। अब वह अक्सर उनका हालचाल पूछने के लिए मेरे घर पर आ जाया करते थे। एक दिन हम लोग सोए हुए थे उस दिन मेरी छुट्टी थी सुमन हमारे घर आ गई। मेरे मां और पिताजी दूसरे रूम में सोए हुए थे जब उसने दरवाजा खटखटाया तो मैंने दरवाजा खोल लिया और उसे कहा कि मेरे माता-पिता अंदर सो रहे हैं तुम चुपचाप मेरे कमरे में आ जाओ। वह मेरे कमरे में आ गई हम दोनों साथ में ही बैठे हुए थे। मै लेटा हुआ था और वह मेरे बगल में ही बैठ गई उसकी चूतडे मेरे लंड से लग रही थी।
मुझे बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था जब उसकी चूतडे मेरे सर से टकरा रही थी। मैंने उठते हुए उसकी योनि को अपने हाथ से दबा दिया और उसके स्तनों को भी मैं दबाने लगा। मैंने उसे बिस्तर पर ही लेटा दिया और उसके होठों को किस करने लगा। मैंने उसके होठों को बहुत देर तक किस किया जिससे कि उसे बड़ा ही मजा आ रहा था और मुझे भी बहुत मजा आ रहा था। मैं सुमन को किस कर रहा था मैंने उसके कपड़े उतारते हुए उसके चूचो को चाटना शुरू कर दिया। जब मैं उसकी योनि को चाट रहा था तो उसे बहुत तीव्र पानी निकल रहा था उसे बिल्कुल भी रहा नहीं गया मैंने भी तुरंत अपने लंड को उसकी योनि के अंदर डाल दिया। जब मेरा लंड उसकी योनि में गया तो वह चिल्ला उठी और उसे बहुत अच्छा महसूस होने लगा। मैंने उसके दोनों पैरों को चौड़ा कर दिया और उसे बड़ी तीव्र गति से झटके देने लगा मैंने उसे इतनी तेजी से धक्के मारे कि उसका शरीर पूरा दर्द होता चला गया। वह मुझे कहने लगी मेरा पूरा शरीर टूट रहा है मैंने उसे घोड़ी बना दिया और जब मैंने उसकी योनि के अंदर अपने लंड को डाला तो उसके मुंह से आवाज निकल आई और मैंने उसे पूरी तेजी से झटके देना शुरू कर दिया। मैंने उसकी चूतडो को पकडा तो वह भी पूरे मूड में आ गई और मुझे कहने लगी मुझे बहुत मजा आ रहा है। मुझसे उसकी गर्मी बिल्कुल नहीं झेली जा रही थी और कुछ समय बाद ही मेरा वीर्य गिरने वाला था। मैंने अपने लंड को बाहर निकालते हुए उसके ऊपर सारा वीर्य गिरा दिया। जब भी मेरी छुट्टी होती तो उस दिन सुमन मेरे घर पर आ जाती है और हम दोनों सेक्स कर लिया करते हैं।