भसुर की परछाई न पड़े पर लंड चाहिए[भाग2]

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भसुर जी का गदह लंड

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तो दोस्तों जैसा कि पहले भाग मे बताया कि अपने भसुर के लंड की दीवानी सरिता ने उसे रात को दर्द का बहाना बनाकर अपने कमरे में बुला लिया था। अपने आप को बेतरतीब स्थिति में करके अपने मस्त चूंचे दिखा कर के और अपने चिकने पेट पर हाथ रखवा करके उसने अपने भसुर की नीयत खराब कर दी थी। सच पूछे तो शालिनी ने अजय जी को फांस लिया था। अजय जी को अब अपने भवह की मस्त जवानी में दिलचस्पी जगने लगी थी और उन्होंने उसके बदन पर हाथ फेर कर जन्नत का मजा पा लिया था।

शालिनी अब तक बिमारी का बहाना बनाई थी और चाहती थी कि कोई भी छेड़खानी उसके भसुर जी करें और फिर इससे उसको कोई कलंक नहीं लगेगा और कम से कम उसके विधुर भसुर उसको छिनाल तो नहीं कहेंगे। उसने दर्द के जगह को बताने के लिए अपने भसुर की उंगलियां पकड़ीं और अपने पेट पर फिसलाने लगी। उसने आंखें बंद की हुईं थीं जिससे ये लगे कि उसको बहुत शरम आ रहि है। ऐसे नाटक खेलने में वो माहिर थी। उसको तो सिर्फ लंड दिख रहा था ख्वाबों में।

अजय जी का हाथ पकड़ के वो अपनी सुन्दर गहरी नाभि के पास ले आई। अपने सुघड़ शरीर के सौष्ठव को दिखाने के लिए इससे बेहतर मौका उसके पास क्या हो सकता था। वह किसी भी प्रकार से उनको दीवाना बनाना चाहती थी और इसके लिए उसको यह सुनहरा अवसर मिल चुका था। नाभि के पास जाते ही अजय जी के मन में बहकाव आने लगा। उनको अपनी बीबी याद आई., पर वह कहां इतनी सुन्दर थी जितनी की शालिनी थी। उन्होंने बरबस नाभि में उंगलियां डाल दीं और लगे फिराने। इस हालत मे शालिनी की छरहरी काया में कामुकता का तूफान डोल रहा था। उसने उनकी उंगलियां पकड़ी और पेटीकोट के नीचे सरका के बोलि, लगता है अपेंडिक्स का दर्द है और नीचे हो रहा है, जरा देखिए ना भैया

ऐसा कहके वो अपने पैर फेंकने लगी और नाटक करने लगि मानो उसको सचमुच का दर्द हो रहा हो। अजय जी ने उसके पैरों को पकड़ा और उसका पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया। और अपनी उंगलियां नीचे सरकाईं। अब वो मारे उत्तेजना के कांप रहे थे। उनको समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है पर वो स्वत; चालित तरिके से सब कुछ करते जा रहे थे। उनकी उन्गलियां नाभि के नीचे पेटिकोट में क्या सरकीं, वो बेकाबू हो गये।

सीधे कमर के नीचे चूत की तरफ सरकती उंगलियां गहराई वाले हिस्से में जाकर रुकी। घनी झांटों वाली चूत पहले ही उत्तेजना से स्त्रावित कामरस से भीज चुकी थी। ऐसे में अजय जी की बुद्धी चकरा गयी। पता नहीं उन्हें क्या हो गया, उन्होंने उसका पेटीकोट खोला, साड़ी नीचे सरकाई और अपनी मूंछें लेकर उसकी झांटों वाली चूत में न जाने क्या खोजने लगे।

अपने भसुर के लंड की दीवानी हुई रानी

वो अपनी मूंछें और मुह उसकी चूत में ऐसे रगड़ने लगे जैसे कि बिल्ली किसी मलाई के मटके पर हाथ साफ कर रही हो। अब शालिनी बुदबुदाइ, एक हल्का सा विरोध, भैया ये क्या कर रहे हैं। हाय मैं मर जाउं, मुझे दर्द हो रहा है और आपको ये सब सूझ रहा है। लेकिन अजय जी के सर पर चुदास का शैतान सवार हो चला था। बोले रुक जा बहू, बस पंद्रह मिनट की तो बात है, अभी मत रोक और कल तुम्हें ले चलूंगा शहर के हस्पताल में वहां इलाज करवा दूंगा। शालिनी चाहती तो यही थी, पर विरोध न करने पर उसकी भाव कम हो जाते। वो रोने लगी, घड़ियाली आंसूं कृपया उपर वाले के लिए मुझे छोड़ दीजिए भैया, मेरे पति का क्या होगा। प्लीज

पर जब मर्द के सर पर शैतान चढता है तो कहां उतरता है। अजय जी ने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी गद्देदार चूत पर रगड़ने लगे। भीगी चूत और मस्त मस्त बदन के सहलाने के बाद शालिनी भी गरम हो गयी थी और भसुर अजय जी तो खैर दशकों बाद जवान चूत पाकर एकदम से निहाल हो गये थे। अपने मोटे लंड मे थूक लगाते हुए उन्होंने झांटों के बीच लंड को फिसला कर एकदम से चूत के मुहाने पर ला खड़ा किया। अपनी कामुक भवह कि पतली कमर को पकड़ कर अपना सिर झुका कर उसके अधखुले ब्लाउज पर ले गये और अपनी मूंछों वाले मुह से झाडू जैसी कड़ी कड़ी दाढी उसके मस्त मस्त चूंचे पर चुभोते हुए चूस ने लगे। अब शालिनी को एक दम गबरु पहलवान मरद मिला था जो उसका अंग अंग तोड़ देता।

उसने अपने पैर को अजय जी के कमर के गिर्द फंसा लिया और कस लिया। अब वो खुद भी चाहती थी कि वो उसे जल्दी से चोद दें। अजय जी ने अपने कमर के गिर्द उसके फंसते मजबूत पकड़ की गरमी महसूस की और उसने एक जोरदार धक्का उसकी चूत में लगा तो दिया। फच फच की आवाज करते हुए गीली चूत में लंड एकदम से अंदर घुस गया।

और शालिनी ने अपनी चूत उछलानी शुरु कर दी। पूरा सहयोग देते हुए वह यह भूल गयी कि घर में सास और ससुर भी सो रहे हैं। मस्त सिस्कारियां मारती हुई उसके खड़े निप्पल को अपने भसुर के मुह में बारी बारी पिलाती हुई वो एकदम बिन्दास हो गयी थी। इस बार उसने अपने हुस्न को पूरा मजा देने की ठान ली थी। जो कमी सुहागरात को उसके पति ने छोड़ी थी, वो सब पूरा करनी थी।

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अजय जी ने उसकी स्तन मर्दन करते हुए चूत की गहराईयो तक अपने लंड को पहुंचा दिया। धक्के के साथ ही लंड अंदर नयी नयी गहराईयां तय करता जा रहा था। और हर झटके के साथ शालिनी आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। उसके चरम स्खलन के बिन्दु तक पहुंचने में मोटे लंबे लंड के चलते मात्र आधे घंटे लगे और उसके चूत से तरल तरल पारदर्शी द्रव बाहर आ रहा था। तो क्या इसे ही बोलते हैं वो मस्ती भरा द्रव्य जो कि चुदाई का निष्कर्ष होता है। चुदी तो पहले वो बहुत लंडों से थी पर अबकी वह इस चरम सुख को प्राप्त कर पायी थी और इसके पीछे था उसके भसुर का मोटा लंड