मैं पढ़ने में बहुत अच्छा था, सभी मुझे प्यार करते थे और मैंने कभी इन बातों पर ध्यान भी नहीं दिया था।
पर उम्र का तक़ाज़ा अच्छे अच्छे को बदल देता है, मैं अपने लंड को और लड़कियों के आकर्षण को महसूस करने लगा था।
ये सब मेरी ज़िंदगी में ऐसे होगा मैंने कभी सोचा नहीं था।
बात उन दिनों की है जब मैंने इंजिनियरिंग में प्रवेश लिया।
मेरे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक शादीशुदा औरत रहती थी, उसका नाम कल्पना था।
रंग दूध सा गोरा, उम्र होगी 25-26 साल और फिगर तो 36-26-32 रहा
होगा, चलती थी तो ऐसा लगता था कि किसी ने मेनका को इंद्र के स्वर्ग से धरती
पे भेज दिया हो…
उसे देखते ही मेरे मन को पता नहीं क्या हो जाता था, मचलने लगता था और लंड सलामी देने लगता था।
खैर कुछ दिन ऐसे ही बीत गये उसे दूर से देखते देखते…
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मैंने जब भी उसे देखा वो हमेशा मुझे हंसती हुई, खिलखिलाती हुई नज़र आती पर मैंने उसके पति को आज तक नहीं देखा था।
एक दिन मेरे फ्लैट की घंटी बजी, मैंने सोचा कोई होगा, जब देखा तो मेरे होश उड़ गये…
दरवाज़े पर कल्पना खड़ी थी हाथ में प्लेट लेकर !
उसने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी और स्लीवलेस ब्लाउज़… काम की देवी लग रही थी वो!
मैं तो उसे देखता ही रह गया।
अचानक वो बोली- मेरी बहन की शादी थी, उसी की मिठाई है।
मैंने प्लेट ले ली और वो चली गई।
मैं उसके बारे में सोचता रहा और उसके नाम की मुठ मारी।
उस दिन मुझे पता चला कि जिस तरह इंसान खाने के बिना नहीं रह सकता उसी तरह सेक्स भी उतना ही ज़रूरी है।
एक दिन मुझे उसके फ्लैट से रोने की आवाज़ें सुनाई दी।
मैंने सोचा कि पता नहीं क्या हुआ होगा, मैं भागकर पहुँचा और घंटी बजाई।
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काफ़ी देर बाद उसने दरवाज़ा खोला…
मैं- मुझे कुछ रोने की आवाज़ें सुनाई दी आपके यहाँ से, क्या हुआ? कोई प्राब्लम?
वो- नहीं नहीं… ऐसा कुछ नहीं है.. आपको शायद कुछ ग़लतफहमी हुई है।
मैं- ओह्ह.. हो सकता है पर मुझे लगा कि शायद वो आपकी आवाज़ थी..
वो- अरे नहीं नहीं.. मैं कभी नहीं रोती..
और कहते कहते वो रोने लगी, आँसू की धार उसके गालों तक आ गई..
मैं- आख़िर बताइए तो बात क्या है, शायद मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ?
वो- आप मेरी कोई मदद नहीं कर सकते, प्लीज़ आप चले जाइए।
मैंने सोचा कि चला जाता हूँ लेकिन फिर मेरी इंसानियत ने मुझे
रोका और सोचा कि एक अकेली औरत को ऐसा रोते हुए छोड़ कर जाना ठीक नहीं है।
मैंने कहा- आप कुछ भी कह लें पर मैं तब तक नहीं जाने वाला जब तक आप बताएँगी नहीं।
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वो मुझे अंदर लेकर गई और दरवाज़ा बंद करके बोली- आख़िर आप चाहते क्या हैं? एक औरत अकेली रो भी नहीं सकती?
मैं- रो सकती है अगर रोने से समस्या का कोई हल निकल आए तो… आख़िर आप बात तो बताइए कि क्या हुआ है?
वो- यह बात मुझसे और मेरे पति से रिलेटेड है..
मैं- अगर बताने लायक हो तो बता दीजिए, वैसे मैंने तो आपके पति को देखा भी नहीं..
वो- देखा तो एक साल से मैंने भी नहीं है.. वो अमेरिका में रहता है आज उसका फोन आया, कहता है उसे मुझसे तलाक़ चाहिए।
मैंने सोचा कि ऐसी काम की देवी जिसके पास हो और वो छोड़ना चाहता हो उससे बड़ा बेवकूफ़ धरती पर नहीं होगा।
मैंने पूछा- क्यूँ..?
वो बोली- शादी के दो महीने के बाद वो मुझे यहाँ अकेला छोड़ के चला गया, और सुनने में आया है कि वहाँ उसकी एक और बीवी है।
मैं चुप था क्यूँकि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूँ..
अचानक वो और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
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मुझे कुछ समझ नहीं आया कि क्या करूँ… तो मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और वो जी भर कर रोती रही।
कुछ देर बाद वो चुप हो गई पर मेरी बाहों में ही पड़ी रही।
फिर मुझे लगा कि उसकी साँसें जोर ज़ोर से चल रहीं हैं..
मैं उठने लगा तो वो बोली- मुझे छोड़ के मत जाओ, मुझे अपनी बाहों में ही रहने दो।
और उसने मुझे और ज़ोर से पकड़ लिया और चुम्बन करने लगी..
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ फ़िर भी मुझे लगा कि इस हालत में यह सब ठीक नहीं है तो मैं उठ कर जाने लगा।
मैंने कहा- ये सब ठीक नहीं है..
वो बोली- तुम तो बड़ा मदद करने आए थे? अब क्या हुआ कि छोड़ के
जा रहे हो.. अगर तुम एक औरत को ज़िंदगी में खुशी नहीं दे सकते तो तुम
ज़िंदगी में करोगे क्या? मैं यह नहीं कह रही कि तुम मुझे ज़िंदगी भर सहारा
दो, पर दो पल की खुशी तो दे ही सकते हो..
मैं अवाक खड़ा था.. ऐसा लगा कि किसी ने मेरे पुरुषार्थ को ललकारा हो..
मैंने कहा- अगर तुम यही चाहती हो तो यही सही..
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मैं उसके पास गया और उसके होठों को अपने होठों से मिला लिया और लगभग दस मिनट तक हम एक दूसरे को चूमते रहे।
फिर उसने मेरे शर्ट को उतारा और मेरे सीने पर सिर रख कर बोली-
तुम भी बहुत चाहते हो ना मुझे.. मैंने भी यह बात गौर की है, पर मैं तुम पर
बोझ नहीं बन सकती..
मैंने कुछ नहीं कहा.. सोचता रहा कि काश मैं भी कुछ कर रहा होता कोई नौकरी तो मैं आज ही इससे शादी कर लेता।
खैर हम दोनों अब गरम हो चुके थे.. मैंने उसकी साड़ी उतार दी, अब वो सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में थी..
क्या लग रही थी…
ऐसा लग रहा था कि स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आई हो।
मैंने उसके पूरे शरीर को चूमा और फिर उसका ब्लाउज़ और पेटीकोट उतार दिया।
उसने काले रंग की ब्रा और सफेद रंग की पेंटी पहन रखी थी..
मैं पागल होता जा रहा था, वो क्या लग रही थी, इसे शब्दों में बयान करना इतना आसान नहीं है..
मैंने प्यार से उसकी ब्रा खोली और उसके चूचों को चूसने लगा,
काफ़ी देर पीता रहा.. कभी दबाता कभी मसलता और कभी उन्हें प्यार से होंठों से
छू कर चुम्बन करता।
वो भी पागल होती जा रही थी..
उसकी तेज साँसें पूरे कमरे में सुनाई दे रही थी।
फिर मैंने उसके पूरे शरीर को प्यार से चूमा..
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वो बोली- जानू तुम इतने दिन से दूर क्यूँ थे.. इस दिन के लिए
मैं बहुत तड़पी हूँ.. एक साल होने को आया है और मुझे ये दिन नसीब नहीं हुआ
और आज जब हुआ है तो ऐसा लग रहा है कि मैं जन्नत में हूँ..
मैंने कहा- बस आज से तुम्हारे तड़प के दिन ख़त्म.. अब मैं आ गया हूँ ना..
फिर उसने मेरा जीन्स और अंडरवीयर उतार दिया और मेरा लंड हाथ में लेकर हिलाते हुए बोली- यह तो बहुत बड़ा है.. मुझे इसे चूसना है..
मैंने कहा- अब यह तुम्हारा है, जो करना है करो..
इतना सुनते ही उसने उसे चूसना शुरू कर दिया और 15 मिनट तक चूसा, उसके साथ खेली और पता नहीं क्या क्या किया..
फिर बोली- जानू अब तड़पाओ मत.. एक साल से तड़प रही इस चूत को लंड दे दो..
मैंने उसकी पेंटी उतारी और बोला- अब मुझे भी तुम्हारी चूत के साथ खेलना है।
तो वो बोली- इसमें पूछने की क्या बात है, जो करना है, करो और इसकी प्यास बुझा दो।
मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू किया और लगभग 15 मिनट तक कभी जीभ से कभी उंगली से..
वो बोली- मैं झड़ने वाली हूँ…
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और उसका पानी निकल गया.. बिस्तर गीला कर दिया उसके पानी ने..
मेरा लंड अब उसकी चूत में जाने को बेताब था और शायद उसकी चूत भी बेताब थी मेरा लंड मेरे को..
वो बोली- मेरे राजा, अब मत परेशान करो ना, अब डाल भी दो ना…
मैंने उसे प्यार से लिटाया और उसके पैर फैला दिए और धीरे से लंड डालने लगा।
लंड था जाने का नाम नहीं ले रहा था.. बहुत टाइट चूत थी उसकी.. होती भी क्यूँ ना… एक साल से तड़प रही थी बेचारी..
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मैंने ज़ोर लगाया और आख़िर अंदर चला ही गया..
वो चिल्ला पड़ी…
आँसू आ गये उसकी आँखों में..
बोली- धीरे धीरे करो, दर्द हो रहा है।
मैं कहाँ मानने वाला था.. मैं लगा रहा।
थोड़ी देर बाद वो भी साथ देने लगी उठा उठा के..
आह आहह आहह और फच्च फच्च की आवाज़ों से पूरा कमरा गूँज उठा।
फिर मैंने उसे उल्टा कर दिया और डॉगी स्टाइल में हम बहुत देर तक करते रहे…
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फिर वो मेरे उपर आ गई और क्रॉस पोज़िशन में करती रही..
इतने टाइम में वो दो बार झड़ चुकी थी और बहुत थक गई थी..
फिर हम वापस मिशनरी पोज़िशन में आ गये और अब झड़ने की बारी मेरी थी..
मैंने कहा- कहाँ निकालूँ?
बोली- अंदर ही गिरा दो… बहुत प्यासी है मेरी चूत..
मैंने अपना गर्म लावा उसके अंदर ही गिरा दिया..
और काफ़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे..
फिर हमने शावर लिया साथ साथ और एक बार फिर उसकी चुदाई की…
उस दिन मैंने चार बार उसकी चुदाई की।
रात को वो बोली- तुमने मुझे आज ज़िंदगी में बहुत बड़ी खुशी दी
है जिसके लिए मैं कब से तड़प रही थी.. वादा करो कि तुम हमेशा मुझे ऐसे ही
खुशी देते रहोगे.. और मेरी जैसी और भी ज़रूरतमंद औरतों और लड़कियो को
ज़िंदगी की खुशी देते रहोगे..
मैंने उससे वादा किया। और तबसे आज तक मैं यही करता आ रहा हूँ।
उसके बाद हमें जब भी मौका मिलता, हम जबरदस्त चुदाई करते और एक दूसरे की बाहों में खो जाते!
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कुछ समय बाद वो चली गई और पता चला कि उसका तलाक़ हो गया है और उसके घर वालों ने उसकी दूसरी शादी तय कर दी है।
एक दिन मेरी उससे बात बात हुई तो वो बोली- अब मैं बहुत खुश हूँ,
मेरे पति मुझे बहुत खुश रखते हैं पर मैं तुम्हारे साथ बिताए पलों को
ज़िंदगी भर संभाल कर रखूँगी और कभी नहीं भूल पाऊँगी..
दोस्तो, इस घटना के बाद मुझे एहसास हुआ कि अगर आप किसी को दो पल
की खुशी दे सकते हो तो वो दो पल काफ़ी हैं आपकी ज़िंदगी सार्थक करने के
लिए…
और क्या एहमियत है उन पलों की किसी की ज़िंदगी में…
और मैं निकल पड़ा दूसरो की ज़िंदगी में खुशियों के पल बाँटने और अकेले और दुखी लोगों की ज़िंदगी में खुशियाँ भरने…
और मुझे यह भी समझ आ गया कि मेरे लंड पर जो तिल है उसका क्या मतलब है…
आज की कहानी बस इतनी सी है..
और भी बहुत कुछ है बताने को लेकिन वो फिर कभी..
आपको मेरी कहानी कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा ताकि मुझे अगली कहानी लिखने की प्रेरणा मिले..
आपके वक़्त के लिए धन्यवाद..