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कुंवारापन अब नही रहा
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मैं प्राइवेट स्कूल में टीचर थी लेकिन मैं अपनी जॉब से बहुत परेशान हो चुकी थी। मैं यह नौकरी छोड़ना चाहती थी लेकिन मैं नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि मेरे घर की स्थिति मेरे आड़े आ जाती और कई बार लगता कि यदि मैंने नौकरी छोड़ दी तो उससे मेरे घर की तकलीफे बढ़ जाएंगे। मेरे पिताजी के एक्सीडेंट के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया और घर में मैं ही बड़ी हूं इसलिए सारी जिम्मेदारी मुझको उठानी पड़ी। मेरा भाई मेरा हाथ बढ़ाता है लेकिन फिर भी अभी उसकी इतनी तनख्वाह नहीं है कि उससे घर का खर्च चल सके। मैं हर रोज सुबह अपने स्कूल सही वक्त पर पहुंच जाया करती लेकिन स्कूल में भी हमारी प्रिंसिपल बड़ी ही गलत किस्म की महिला हैं।

 हमारे स्कूल में शायद ही कोई टीचर होगा जो उन्हें पसंद करता होगा लेकिन क्या करें वह भी अपनी नौकरी कर रही हैं और हमें भी अपनी नौकरी करनी है। महीने की एक तारीख को हमारे हाथ में तनख्वाह आ जाती है लेकिन जिस दिन तनख्वाह मिलती है उस दिन हमारी प्रिंसिपल हमें बहुत कुछ सुनाती है। वह कहते हैं की बच्चों का रिजल्ट इस वर्ष और भी अच्छा होना चाहिए तो सब लोग सिर्फ अपनी गर्दन हिला कर कहते हैं हां मैडम इस वर्ष बहुत अच्छा रहेगा। मैं कक्षा पांचवी तक के बच्चों को पढ़ाती हूं और उनके साथ मेरा बहुत अच्छा अनुभव रहता है मुझे उन्हे पढ़ाने में बहुत अच्छा लगता है। वह लोग मेरे साथ घुलमिल भी जाते हैं जिस वजह से कई बार मुझे ऐसा लगता है कि मैं स्कूल नही छोडूंगी लेकिन अपनी प्रिंसिपल की डांट के वजह से कई बार ऐसी दुविधा रहती है कि मुझे स्कूल छोड़ देना चाहिए। मैं चाहती थी कि मैं किसी सरकारी स्कूल में पढ़ाऊँ लेकिन मेरा अभी तक किसी भी सरकारी स्कूल में नहीं हो पाया था इसी वजह से मुझे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना पड़ रहा था। मेरी काफी कम तनख्वाह थी लेकिन उतने ही पैसों में मुझे पढाना पड़ता था, यह मेरी मजबूरी ही थी कि जो मैं विमला कुमारी मैडम जो कि हमारे प्रिंसिपल हैं मैं उनकी साथ काम कर रही थी। यदि बच्चों का रिजल्ट खराब होता और बच्चे फेल होते तो वह मुझे ही कहती कि तुम उन पर ध्यान क्यों नहीं देती और ना जाने वह मुझे क्या-क्या भला-बुरा कहती लेकिन फिर भी मुझे कड़वा घूंट पीना पड़ता क्योंकि मेरी मजबूरी थी कि मैं स्कूल में नौकरी करूं।

 हमारे स्कूल में एक टीचर है जिनका नाम निखिल कुमार सक्सेना है, सक्सेना साहब बच्चों को म्यूजिक सिखाया करते थे लेकिन उनके अंदर एक अलग ही बात थी जो भी उनसे बात करता तो वह उनसे बहुत प्रभावित हो जाया करता। एक दिन मुझे भी सक्सेना साहब से बात करने का मौका मिला उस दिन हम लोग लंच टाइम में साथ में ही बैठकर लंच कर रहे थे मैंने उस दिन सक्सेना साहब से पूछा आपको स्कूल में पढ़ाते हुए कितने वर्ष हो चुके हैं। वह मुझे कहने लगे मैं तो पिछले 15 वर्षों से स्कूल में पढ़ा रहा हूं मैंने उन्हें कहा मैंने सुना है कि आप बहुत ही अच्छा गाते हैं कभी हमें भी गाना गाकर सुनाइएगा। निखिल सक्सेना साहब ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया जी जरूर आपको भी कभी हम अपनी आवाज में गाना सुनाएंगे। सक्सेना साहब के 10 वर्ष की एक लड़की है उसे भी एक दिन वह स्कूल में लाए थे और उन्होंने सारे टीचरों से अपने बच्चे को मिलवाया। जिस दिन भी मुझे ऐसा लगता कि मेरा मूड आज सही नहीं है तो उस दिन मैं सक्सेना साहब से बात कर लिया करती वह कोई ना कोई चुटकुला तो ऐसा सुना ही देते थे जिससे कि मूड एकदम फ्रेश हो जाया करता था। ऐसा लगता कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है इसी बात से सब लोग उनसे बहुत प्रभावित रहते थे इसी दौरान मैं भी अब सरकारी परीक्षा की तैयारी करने लगी थी। मैंने एक सरकारी फार्म भी भर दिया मुझे उम्मीद थी कि इस वर्ष मैं जरूर निकल जाऊंगी और हुआ भी ऐसा ही की मेरा सलेक्शन सरकारी नौकरी में हो गया। मैंने जब इंटरव्यू दिया तो मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज थी लेकिन मेरा सिलेक्शन हो चुका था और अब मैंने अपना पुराने स्कूल छोड़ दिया। मुझे विमला मैडम से तो छुटकारा मिल चुका था लेकिन मुझे शायद यह मालूम नहीं था कि मेरा सामना हमारी दूसरी प्रिंसिपल से होने वाला है वह भी बड़ी सख्त मिजाज थी और स्कूल के सारे टीचर उनसे डरते थे।

 मेरी नई नई जॉइनिंग थी उन्होंने उस दिन मुझे ऑफिस में बुलाया मैं जैसे ही ऑफिस के अंदर गई तो मैंने देखा कुर्सी पर एक हट्टी कट्टी महिला बैठी हुई थी उनका वजन कम से कम 90 किलो के ऊपर ही रहा होगा। उन्होंने चश्मे पहने हुए थे और उनकी शक्ल देख कर ही एहसास हो रहा था कि वह बड़ी गुस्सैल किस्म की महिला है उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा पहले तो मैंने मना किया लेकिन फिर मैं बैठ गई। जब मैं उनके पास बैठी तो मैं सिर्फ उनके सर के पीछे लगी घड़ी को देख रही थी और सोच रही थी कि कब मैं कमरे से बाहर जाऊं लेकिन उन्होंने मुझे अपने साथ ही बैठा लिया। वह कहने लगी यह स्कूल सरकारी है लेकिन यहां का रिजल्ट हर वर्ष 100% रहता है इसलिए मैं नहीं चाहती कि आप अपनी पढ़ाई में कोई भी कमी करें मुझे जहां तक जानकारी है आपने इससे पहले भी स्कूल में पढ़ाया है। मैंने उन्हें कहा जी मैडम मैंने इससे पहले भी स्कूल में पढ़ाया है और वहां पर भी मैंने अपना शत-प्रतिशत ही दिया है मैं घड़ी की सुई की तरफ देख रही थी लेकिन उस दिन ऐसा लगा कि जैसे समय थम सा गया था और समय आगे ही नहीं बड़ रहा था।

 मैं सिर्फ अपने दिमाग में ही सोच रही थी कि कब मैं मैडम के ऑफिस से बाहर जाऊं लेकिन उन्होंने मुझे करीब आधे घंटे तक अपने पास बैठा कर रखा और वह आधा घंटा भी मुझे ऐसा लगा जैसे कि कितने लंबे समय से मैं उनके साथ ही बैठी हुई थी। जैसे ही मैं उनके ऑफिस से बाहर आई तो वहां एक मैडम खड़ी थी उन्होंने मुझे एक मुस्कान दी और कहने लगे कि आप स्कूल में नई है। मैंने उन्हें कहा जी मैं स्कूल में नई हूं उन्होंने मुझ से हाथ मिलाते हुए कहा आपका क्या नाम है मैंने उन्हें बताया मेरा नाम सुनैना है और उनका नाम मीनाक्षी है। वह मुझे कहने लगी हिटलर मैडम आपसे क्या कह रही थी यह बात सुनते ही मेरी हंसी छूट पड़ी और मैं समझ गई कि उनकी छवि और टीचरों के बीच में क्या है। वैसे मैडम का नाम पुष्पा सहाय था लेकिन वह किसी भी एंगल से पुष्पा नहीं थी वह तो सचमुच की हिटलर थी और सब लोग उनसे बड़ा डरा करते थे। धीरे धीरे मेरे स्कूल में अच्छे दोस्त बनने लगे और बच्चे भी बहुत अच्छे थे मैं सबको अच्छे से पढाया करती और उसी दौरान मेरी मुलाकात निखिल कुमार सक्सेना जी से हुई। वह मुझे कहने लगे मैडम आप तो हमें भूल ही गए आपकी जब से नौकरी लगी है तब से आपने हमें फोन करना और हम से संपर्क करना ही छोड़ दिया। मैंने उन्हें कहा नहीं सक्सेना साहब ऐसा नहीं है मुझे समय नहीं मिल पाता इस वजह से आप लोगों से मुलाकात नहीं हो पाती लेकिन मैं आपसे मिलने के बारे में सोच रही थी। मैं सोच रही थी कि एक दिन स्कूल में जाऊं सक्सेना साहब कहने लगे हां क्यों नहीं आप स्कूल में आइए और आपने अभी तक मेरा गाना नहीं सुना मैंने कहा ठीक है सक्सेना साहब आपसे मिलने के लिए तो जरूर आऊंगी। मैं उनसे ज्यादा देर तक बात नही कर पाई उसके बाद मैं अपने घर चली आई। कुछ दिनों बाद में उनसे मिलने के लिए चली गई जब मैं सक्सेना साहब से मिलने के लिए उनके घर पर गई तो उनके घर में उनकी 10 वर्षीय बेटी थी और उनकी पत्नी जाने कहां गई हुई थी।

 उन्होंने मुझे अपनी आवाज में एक बढ़िया सा गाना सुनाया जिससे कि उन्होंने मुझे प्रभावित कर लिया और सक्सेना साहब ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं अपने तन बदन को उनको सौपने को तैयार हो चुकी थी। आखिरकार वह मौका भी आ गया मैंने अपना बदन को उनको सौप दिया। उस दिन मैं उनके घर पर गई मुझे मालूम पड़ा कि सक्सेना साहब की पत्नी और उनके बीच में बिल्कुल नहीं बनती। जब उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ा और कहने लगी मैं काफी अकेला हूं क्या आप मेरा साथ देंगी। मैंने उन्हें कहा क्यों नहीं मेरी भी इच्छा जाग चुकी थी उन्होंने जब मेरे होठों को अपने होठों में लिया तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पता नहीं कौन सी दुनिया में आ गई हूं। मैं उनका पूरा साथ देने लगी सक्सेना साहब मेरे ऊपर चढ़ने को तैयार बैठे थे उन्होंने मुझे कहा सुनैना जी आप अपने कपड़े उतार दीजिए मैंने भी अपने कपड़ों का उतारना शुरू किया और जब मैं उनके सामने नग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी तो उन्होंने मुझे कहां आप किसी परी से कम नहीं है। वह मेरे होठों को चूमने लगी उसके बाद उन्होंने मेरे बदन को महसूस किया जिससे कि मेरे अंदर की गर्मी और भी ज्यादा बढ़ने लगी थी और मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुंच गई।

 पहली बार ही मैं किसी व्यक्ति के साथ अंतरंग संबंध बनाने जा रही थी मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज थी उन्होंने जैसे ही मेरे बिना बाल वाली योनि के अंदर अपने लंड को प्रवेश करवाया। जैसे ही मेरी योनि में उनका 9 इंच मोटा लंड प्रवेश हुआ तो मेरे मुंह से बड़ी तेज आवाज मे चिख निकली मेरी आवाज में मादकता थी। मेरे अंदर से सेक्स की भावना और भी ज्यादा बढ़ने लगी और मैं पूरी तरह से जोश मे आने लगी। मै उनको कहती सक्सेना जी तुम मुझे ऐसे धक्के मार रहे हो जैसे कि कितने समय से भूखे बैठे थे। उन्होंने मेरी योनि को छिल कर रख दिया था मैं अपने मुंह से सिसकिया ले रही थी मुझे दर्द भी हो रहा था लेकिन उस दर्द में एक मीठा सा एहसास था मैं काफी देर तक उनके साथ शारीरिक संबंध का आनंद उठाती रही। उन्होंने अब मुझे और भी तेजी से धक्के देने शुरू कर दिए थे जिससे कि मेरे मुंह से और भी तेज आवाज निकलने लगी। वह मेरे स्तनों को अपने मुंह में लेने लगे लेकिन कुछ ही क्षणों बाद उन्होंने अपने वीर्य को मेरी योनि में गिराया तो मैं उन्हें कहने लगी आप मुझे कपड़ा दे दीजिए। जब उन्होंने मुझे कपड़ा दिया तो उस कपड़े में मेरा खून भी लगा हुआ था मेरी योनि अब सील पैक नहीं रह गई थी।

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