नौकरानी को सेड्युस किया

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दोस्तों लड़की को सेड्युस कर के चोदने में बड़ा मजा आता हैं. बस सेड्युस करने का तरीका ठीक होना चाहियें. मैंने अपने घर की नौकरानी को ऐसे ही सेड्युस कर के मस्त चोदा था. और आज मैं उसकी चुदाई की कहानी आप को बताऊंगा. मेरा नाम अजीम हैं और मैं लखनऊ का रहनेवाला हूँ. यह बात हैं एक खुबसूरत कामवाली की जिसकी उम्र कुछ 23 की थी, शादीसुदा थी और सांवली सलोनी थी साली. उसका पति बड़ी ही किस्मतवाला होंगा, रोज चोदता होंगा इसे. उसका फिगर 33-26-34 जितना था.


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अर्पिता के सेक्सी बूब्स

और उसके बूब्स ऐसे की दबाने को मन हो ही जाएँ. ब्लाउज में समाते भी नहीं थे यार. कितनी भी साडी ढांके वो लेकिन वो छिप नहीं सकते थे. उसके ब्लाउज में वो चुंचे जैसे उभर ही आते थे. झाड़ू लगाते हुए जब वो झुकती थी तो ब्लाउज के ऊपर से ही उसके बूब्स का मस्त नजारा दीखता था. और वो ब्रा तो पहनती ही नहीं थी कभी भी जिसकी वजह से उसके मोटे बूब्स इधर उधर लहराते थे. जब भी वो झाड़ू लगाती मैं किसी न किसी बहाने उसके बूब्स देखने चला आता था. जब वो चलती तो उसकी गांड ऐसे मटकती की लंड खड़ा हो जाता. मानो उसकी गांड कहती हो की आओ सालो दबाव मुझे जोर जोर से. और जब वो अपनी बुर पर हाथ रखती तो दील करता की काश वो हाथ मेरा होता जो उसकी चूत को छू रहा होता.मैं अक्सर उसे चोदने के ख्वाब देखता, सोचता कैसे मैं उसे पा सकूँ और उसकी गीली चूत में अपना लंड दे सकूँ.

साला मेरा लंड मानता ही नहीं था किसी भी तरह से. वो उसके बुर में घुसने के लिए बेकरार था. और साली यह थी की मुझे घास नहीं डालती थी. बस अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती. मैंने भी कभी उसे अहसास नहीं होने दिया की मैं उसकी चूत का भुत बना हुआ हूँ. अब उसे चोदना था इसलिए मैंने सोचा की पहले उसे अच्छे से सेड्युस करना पड़ेंगा वरना दाल नहीं गलेंगी अपनी. कही जल्दबाजी हुई तो भांडा फुट सकता था इसलिए धीरे कदम बढाने थे. मैंने उसके साथ थोड़ी थोड़ी बातें करनी स्टार्ट कर दी अब. उसका नाम अर्पिता था.

एक दिन सुबह उसे चाय बनाने के लिए कहा. उसने अपने नरम नरम हांथो से जब चाय दी तो लंड खड़ा हो गया. मैंने चाय पीते हुए कहा, अर्पिता चाय तुम मस्त बनाती हों. उसने जवाब दिया, बहुत अच्छा बाबूजी. अब मैं रोज चाय बनवाता और उसकी तारीफ़ करता. और फिर एक दिन मैंने ऑफिस जाने से पहले अपनी शर्ट की इस्त्री उसके पास करवाई और कहा, अर्पिता तुम तो इस्त्री भी मस्त करती हो.

ठीक हैं बाबूजी, उसने वही प्यारी आवाज में कहा. जब कोई नहीं होता तब मैं उससे इधर उधर की बातें करता जैसे की, तुम्हारा पति क्या करता हैं? उसने कहा की वो एक एक मिल में नौकरी करता हैं बाबूजी. मैंने पूछा, कितने घंटे की ड्यूटी होती हैं. अर्पिता ने कहा, साहब 10-12 घंटे तो लग ही जाते हैं. कभी कभी नाईट में भी ड्यूटी रहती हैं. मैंने पूछा, तुम्हारे बच्चे कितने हैं? अर्पिता बोली, अभी तो एक लड़का हैं दो साल का. मैंने पूछा, उसे घर में अकेला छोड़ के आती हों? उसने कहा, नहीं मेरी सास हैं घर में वो देखती हैं उसे.

मैंने बात को और खिंचा और पूछा, तुमे कितने घरो में काम करती हो? उसने कहा, साहब बस आप के और निचे के घर में. तो फिर तुम दोनों का काम चल ही जाता होंगा. अर्पिता बोली, चलता तो हैं लेकिन मुश्किल से. मेरा आदमी शराब बहुत पीता हैं और सब पैसे बर्बाद कर देता हैं. मैंने अब उसे थोड़ी हिंट दी और कहा, ठीक है अगर जरुरत हो तो मुझे बताना, मैं मदद करूँगा. उसने अजीब ढंग से मुझे देखा इसलिए मैंने कहा, मेरा मतलब हैं तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊंगा. ठीक हैं साहब, कहते हुए उसने ठंडी सांस भरी.

इस तरह दोस्तों मैं बातों का सिलसिला काफी दिनों तक जारी रखता रहा और अपने दोनों के बिच की झिझक को खत्म कर दिया. एक दिन मैंने मस्ती में कहा, तुम्हारा आदमी पागल ही होंगा, उसे समझना चाहियें की इतनी खुबसुरत पत्नी के होते हुए शराब की क्या जरुरत हैं भला…! औरत बहुत तेज होती हैं दोस्तों, उसने कुछ कुछ समझ लिया था लेकिन अहसास नहीं होने दिया अभी अपनी नाराजगी का. अब मैं भी समझ गया की वो फ्री हो गई हैं मेरे से और मौका मिलने पर उसे दबोच सकते हैं, भरोसा था की चुदवा लेगी वो.

सब से बड़ा रुपैया

 

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और आखिर एक दिन ऐसा मौका हाथ लग ही गया. कहते हैं ना की ऊपर वाले के वहां देर हैं लेकिन अंधेर नहीं हैं. सन्डे का दिन था, पूरी फेमिली एक शादी में गई थी और मैं पढने के बहाने घर ही रुका था. मोम कह कर गई थी की अर्पिता आये तो घर का सब काम ठीक से करवा लेना, कौन बताएं मोम को की मैं भी वही चाहता था.

मेरे मन में लड्डू फुट रहे थे. तभी अर्पिता आई, उसने दरवाजा अंदर से बंध किया और अपने काम में लग गई. इतनी दिन की बातीचीत के बाद उसे मुझ पर भरोसा हो चूका था. मैंने हमेशा की तरह ही चाय बनवाई और पीते हुए चाय ककी तारीफ़ की. मैं ही मन मैंने निश्चय किया की आज तो पहल करनी ही पड़ेंगी वरना गाडी हाथ से निकल जायेंगी. लेकिन कैसे पहल करूँ?

आखिर मुझे ख्याल आया की भाई सब से बड़ा रुपैया ही हैं. मैंने उसे बुलाया और कहा, अर्पिता तुम्हे पैसे की जरुरत हो तो मुझे जरुर बताना. जरा भी झिझकना मत. अर्पिता बोली, साहब आप सेलरी से काटोंगे और मेरा आदमी मुझे मारेंगा.  मैंने कहा, अरे पगली मैं सेलरी की बात नहीं कर रहा हूँ. ऐसे ही मदद के लिए देने की बात कर रहा हूँ और किसी को नहीं कहूँगा. अर्पिता खुश हुई, आप सच में मुझे पैसे देंगे साहब.


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बस फिर क्या था. कुड़ी पट ही गई थी अब तो. बस मुझे आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी. मैंने कहा, जरुर दूंगा अर्पिता, इस से तुम्हे ख़ुशी मिलेंगी ना. वो बोली, हाँ साहब बहुत आराम हो जायेंगा मुझे इस से. अब मैंने हलके से कहा, और मुझे भी ख़ुशी मिलेंगी अगर तुम कुछ ना कहो तो. और जैसे मैं कहूँ वैसे करो तो. बोलो मंजूर हैं? और इतना कह के मैंने फट से 500 का नोट निकाल के उसके हाथ में दे दिया. उसने पैसे लिए और हँसते हुए पूछने लगी, क्या करना होंगा साहब? अपनी आँखे बंध कर दो पहले तो, यह कहते हुए मैं उसकी और बढ़ा. बस थोड़ी देर के लिए आँखे बंध करो और खड़ी रहो.